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वंशानुक्रम तथा वातावरण Heredity and Environment

मानव का विकास अनेक कारकों द्वारा होता है। इन कारकों में दो प्रमुख कारक हैं-जैविक - एवं सामाजिक। जैविक विकास का दायित्व माता-पिता पर होता है और सामाजिक विकास का वातावरण पर माता-पिता इस बालक को जन्म देते हैं, उसका शारीरिक विकास गर्भावस्था से आरंभ होता है और मृत्युपर्यन्त चलता रहता है। सामाजिक विकास जन्म के पश्चात् मिले वातावरण से होता है। जन्म से सम्बन्धित विकास को वंशानुक्रम तथा समाज से सम्बन्धित विकास को वातावरण कहते हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण व्यक्तिगत विशेषताओं को तथा परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, तथापि शिक्षा के क्षेत्र में काफी समय से यह विवाद बना हुआ है। कि व्यक्ति और उसके व्यवहार पर वंशानुक्रम का अधिक प्रभाव पड़ता है अथवा वातावरण का। वंशानुक्रम के समर्थक इस बात पर बल देते हैं कि व्यक्ति के विकास और व्यवहार के निर्धारण में वंशानुक्रम का अधिक प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत वातावरण के समर्थक वातावरण के प्रभाव को अधिक महत्व देते हैं। वास्तविकता यह है कि व्यक्ति के विकास और व्यवहार के निर्धारण में वंशानुक्रम और वातावरण दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान है।

वंशानुक्रम का अर्थ (MEANING OF HEREDITY)

वैज्ञानिक रूप से वंशानुक्रम एक जैविकीय तथ्य है, यह जेनेटिक्स के सिद्धांतों पर आधारित है। प्राणिशास्त्रीय नियमों के अनुसार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को कुछ गुण हस्तान्तरित किए जाते हैं। इस हस्तान्तरण की प्रक्रिया को प्राणिशास्त्रीय विरासत कहते हैं। पूर्वजों के इन हस्तान्तरित किए गए शारीरिक एवं मानसिक लक्षणों के मिश्रित रूप को ही वंशानुक्रम, वंश, परम्परा, पैतृकता या अनुवांशिकता आदि कहा जाता है। इसके कारण समान से समान जीव ही उत्पन्न होता है अर्थात् गाय से गाय और मानव से मानव ही जन्म लेता है। जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही उसकी सन्तान होती है। अक्सर यह देखने को मिलता है कि विद्वान् माता-पिता का बालक भी विद्वान् होता है। कभी-कभी यह भी देखने को मिलता है कि विद्वान् माता-पिता के बालक मूर्ख और मूर्ख माता-पिता के बालक विद्वान् होते हैं। इसका कारण यह है कि बालक को न केवल अपने माता-पिता के वरन् उनमें विद्यमान उनके पूर्वजों के भी गुण प्राप्त हो सकते हैं। प्रत्येक प्राणी को अपने पूर्वजों से निम्न तीन प्रमुख गुण प्राप्त होते हैं :-

1. पूर्वजों और माता-पिता की समानता,

II पूर्वजों और माता-पिता की भिन्नता, तथा

III कुछ असामान्य विचित्रताएँ।

माता-पिता और पूर्वजों के इन हस्तान्तरित किए हुए शारीरिक और मानसिक लक्षणों के मिश्रित रूप को ही वंशानुक्रम कहते हैं। 

वंशानुक्रम की परिभाषाएँ (DEFINITIONS OF HEREDITY)

जेम्स ड्रेवर के अनुसार-"वंशानुक्रम माता-पिता से उनकी संतान में दैहिक और मनोगुणों/लक्षणों का संप्रेषण है।"
"Heredity is the transmission from parents to offsprings of physical and mental characterstics." - James Drever 

एच. ए. पेटरसन के अनुसार-"अपने माता-पिता के माध्यम से पैतृक कोष का प्राप्तांश वंशानुक्रम है।" 
"Heredity may be defined as what one gets from his ancestral stock through his parents." -H. A. Peterson

आर. एस. वुडवर्थ के अनुसार-"वंशानुक्रम जन्म से नौ माह पूर्व निषेचन के समय व्यक्ति से उपस्थित सभी घटकों को सम्मिलित करता है। यह जन्म के समय जीवनारंभ से नौ माह पहले उपस्थित हो जाती है।"
"Heredity covers all the factors that are present in the individual when he begins life not at birth but at the time of conception about nine months before birth." - R. S. Woodworth

ओ. बी. डगलस तथा बी. एफ. हॉलैण्ड के अनुसार- "व्यक्ति की अनुवांशिकता में सम्पूर्ण ढाँचा, दैहिक लक्षण, कार्य या क्षमताएँ, माता-पिता तथा अन्य पूर्वज या जाति से आने वाली विशेषताएँ सम्मिलित रहती हैं।"
"One's heredity consits of all the structures, physical characteristics, functions or capacities derived rom parents, other ancestry or species." - O. B. Douglas and B. F. Holland 

रुथ बैंडिक्ट के अनुसार- "वंशानुक्रम माता-पिता से उनकी संतान को गुणों का प्रेषण है।"
"Heredity is transmission of traits from parents to offsprings." Ruth Bendict 

जे. ए. थॉमसन के अनुसार- "वंशानुक्रम मुख्यतः अनुवर्ती पीढ़ियों के बीच आनुवांशिक सम्बन्ध को दर्शाने वाला सहज शब्द है।" 
"Heredity is mainly a convinient term for the genetic relation between successive generations." - J. A. Thomson

पी. जिस्वर्ट के अनुसार-"प्रकृति के सृजन का प्रत्येक कार्य माता-पिता से बच्चों को जैविक या मनोवैज्ञानिक कतिपय लक्षणों का प्रेक्षण करने का है। लक्षणों को इस तरह जटिलता को वंशानुक्रम कहा जाता है।" 
"Every act of generation in nature is the transmission by the parents to their offspring of certain characteristics biological or psychological. The complex of the characteristics thus transmitted is known by the name of heredity." - P. Gisbert

बी. एन. झा के अनुसार- "वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण योग है।" 
"Heredity is the sum total of inborn individual traits." - B. N. Jha

वंशानुक्रम के सिद्धान्त (PRINCIPLES OF HEREDITY)

वंशानुक्रम की क्रियाविधि के अध्ययन और परीक्षण के पश्चात् वैज्ञानिकों ने कुछ सिद्धान्त प्रतिपादित किए हैं, जो इस प्रकार हैं

1. गाल्टन का जीव सांख्यकीय सिद्धान्त (Galton's Biometry Theory)-गाल्टन ने एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संक्रमण होने वाले गुणों का सांख्यिकीय अध्ययन किया जिसके आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष दिया कि बालक को वंशानुक्रम की विरासत से मिलने वाले गुण केवल माता-पिता से ही नहीं प्राप्त होते अपितु वह अपने ये गुण दादा-दादी, परदादा-परदादी तथा अन्य पूर्वजों से भी प्राप्त करता है। उनके अनुसार बालक में संक्रमण होने वाले गुणों की मात्रा पीढ़ी दर पीढ़ी एक निश्चित अनुपात में हस्तान्तरित होती है। इसे निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है:-


इस सिद्धान्त से स्पष्ट है कि व्यक्ति की समस्त विशेषताएँ उसे अपने माता-पिता से ही प्राप्त होती हैं वरन् उसे अपने पूर्वजों से भी प्राप्त होती हैं। जैसे-जैसे पुरानी होती जाती हैं, उसका अंशदान कम होता जाता है। यही कारण है कि माता-पिता के बुद्धिमान होते हुए भी उनकी संतानें मन्दबुद्धि हो सकती हैं, यदि उन दोनों के पूर्वजों में कोई मन्दबुद्धि रहा हो। इसी प्रकार माता-पिता के गोरे होने पर भी संतान काली हो सकती है। यह काला रंग उसे माता या पिता की तरफ से पूर्वजों से प्राप्त होता है।

2. वीजमैन का बीज कोश की निरन्तरता का सिद्धान्त (Weismann's Theory of Continuity of Germplasm)-वीजमैन ने स्पष्ट किया है कि स्त्री-पुरुषों के जीन्स से जाइगोट का निर्माण होता है और जाइगोट में दो प्रकार के कोष होते हैं-शरीर कोश (Body Cell) और जीव कोश (Germ Cell)। जीव कोष कभी नष्ट नहीं होता यह पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होता रहता है। इस प्रकार एक पीढ़ी के गुण दूसरी पीढ़ी को मिलते रहते हैं। आधुनिक आलोचकों के अनुसार वीजमैन का सिद्धान्त वंशानुक्रम की सम्पूर्ण प्रक्रिया की व्याख्या संतोषजनक ढंग से नहीं करता। अतः यह सिद्धान्त मान्य नहीं है।

3. मेण्डल का वंशानुक्रम का सिद्धान्त (Mendel's Theory of Heredity)-मेण्डल ने मटरों पर परीक्षण कर यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि वर्णसंकर प्राणी अथवा जीव अपने मौलिक रूप की ओर अग्रसर होता है। मेण्डल ने ये प्रयोग मटरों और चूहों पर किए।

मेण्डल ने छोटी और बड़ी दो प्रकार की मटरों को समान संख्या में लेकर बोया। उगने वाली मटरों में सभी वर्णसंकर जाति की थीं। इन वर्णसंकर जाति की मटरों को फिर से बोया गया, तो उनसे उत्पन्न होने वाली मटरें विशुद्ध और वर्णसंकर दोनों प्रकार की थीं। उन्होंने वर्णसंकर जाति की मटरों को बारम्बार बोया। अन्त में उसे ऐसी मटरें उपलब्ध हुई, जो वर्णसंकर होने के बजाए शुद्ध थीं। मेण्डल का यह प्रयोग रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:-


मटरों के उपर्युक्त प्रयोग द्वारा मेण्डल इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि जो गुण जाग्रत होता है, वह सुप्त गुण को दबा देता है।

चूहों पर प्रयोग (Experiment on Rats)

मेण्डल ने सफेद और काले चूहों को साथ-साथ रखा। इन चूहों के बच्चे पैदा हुए वे सभी वे काले रंग थे। फिर इन वर्णसंकर काले चूहों को एक साथ रखा गया। इनसे उत्पन्न होने वाले चूहे काले और सफेद दोनों रंगों के थे तथा काले और सफेद चूहों का अनुपात 3 | था। इस तरह उत्पन्न सफेद चूहों से केवल सफेद चूहे उत्पन्न हुए, किन्तु काले चूहों में से एक तिहाई ने केवल काले चूहे उत्पन्न किए और दो तिहाई ने काले (3) और सफेद (1) दोनों प्रकार के बच्चे उत्पन्न किए।

उपर्युक्त परीक्षणों से निष्कर्ष निकलता है कि नर और मादा के गुण-सूत्रों में से कुछ तो व्यक्त और कुछ सुप्त रूप में होते हैं। व्यक्त गुण के अभाव में सुप्त गुण प्रधान हो जाता है। मेण्डल के नियम को प्रमुख की ओर प्रत्यागमन का नियम भी कहा जाता है।


वर्तमान में इस सिद्धान्त को अपेक्षाकृत अधिक मान्यता प्राप्त है। परन्तु मेण्डल ने जो प्रतिशत निश्चित किया है वह सब मनुष्यों पर लागू नहीं होता, यह तो पैत्रकों के संयोग पर निर्भर करता है जो किसी विशेष क्रम में नहीं होता, चान्स फैक्टर पर निर्भर करता है।

4. विकासवाद का सिद्धान्त (Theory Evolution)-इसे अर्जित गुणों के संक्रमण का सिद्धान्त भी कहते हैं। जीव वैज्ञानिक लेमार्क के अनुसार प्राणी की कुछ आन्तरिक उत्तेजना होती है जो उसकी आवश्यकताओं की संतुष्टि करती है और ऐसा करने में वह अपनी स्वाभाविक आदतों को पर्यावरण के अनुकूल कर लेता है तथा अपनी शारीरिक संरचना में बदलाव ले आता है और इस शारीरिक परिवर्तन को वह अगली पीढ़ी में हस्तान्तरित कर देता है। इस प्रक्रिया में शरीर का कोई अंग अपेक्षाकृत विकसित हो जाता है तथा कोई अंग विलुप्त हो जाता है जिससे कई पीढ़ियों के बाद नई प्रकार की प्रजाति का विकास हो जाता है। इसके समर्थन में उन्होंने जिराफ का उदाहरण दिया और बताया कि जिराफों की गर्दन पहले घोड़े की तरह ही थी लेकिन पेड़ों की पत्तियाँ खाने के प्रयास में उनकी गर्दन पीढ़ी दर पीढ़ी लम्बी होती गयी।

डार्विन के अनुसार वे ही प्राणी जीवित रह पाते हैं जिनमें पर्यावरण के साथ संघर्ष करने की क्षमता होती है। डार्विन के अनुसार प्राणी जीवन रक्षा के लिए जिन गुणों को अर्जित करता है, वे गुण अगली पीढ़ी में संक्रमित हो जाते हैं। 
मैकडूगल ने चूहों पर एक परीक्षण किया, उन्होंने कुछ चूहों को तालाब में छोड़ दिया जिससे निकलने के दो मार्ग थे-एक में प्रकाश था, दूसरे में अंधेरा। प्रकाश वाले रास्ते में एक बिजली का तार लगा दिया था जिससे इस रास्ते से निकलने पर चूहों को झटका लगे। चूहे प्रकाशित मार्ग से निकलने का प्रयास करते थे किन्तु बिजली का झटका लगते ही घबड़ा जाते थे और दूसरे मार्ग को खोजने का प्रयास करते थे। दूसरा मार्ग अंधकारमय था मगर सुरक्षित था। सुरक्षित मार्ग से निकलने के प्रशिक्षण में प्रथम पीढ़ी के चूहों 165 बार गलती की थी, जबकि चूहों की 23वीं पीढ़ी ने सुरक्षित मार्ग चुनने में 25 बार गल्तियाँ कीं। अतः यह प्रयोग प्रमाणित करता है कि अर्जित गुणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरण हो सकता है।

मनोवैज्ञानिक वीजमैन ने चूहों पर प्रयोग करके प्रमाणित किया कि माता-पिता द्वारा अपने जीवन काल में उपार्जित गुणों का हस्तान्तरण उनकी संतानों में नहीं होता है। वीजमैन ने कुछ चूहों की पूँछ काट दी। इसी तरह कई पीढ़ियों तक चूहों की पूँछ काटते रहे, किन्तु किसी भी पीढ़ी में कोई पूँछ विहीन चूहा नहीं पैदा हुआ। इससे यह निष्कर्ष कि उपार्जित गुणों का हस्तान्तरण संतानों में नहीं होता।

डार्विन तथा वीजमैन के प्रयोगों से स्पष्ट होता है कि वे गुण ही अगली पीढ़ी में हस्तान्तरित होते हैं जिनका जीवन के लिए संघर्ष करते समय बीजकोशों पर प्रभाव पड़ता है और जो अर्जित बोजकोशों पर प्रभाव नहीं डाल पाते वे हस्तान्तरित नहीं होते। यही कारण है कि परिवार में सीखी गई भाषा का संक्रमण नई पीढ़ी में नहीं होता है तथा भाषा प्रत्येक पीढ़ी में नए सिरे से सीखनी पड़ती है।

वंशानुक्रम की क्रिया (MECHANISM OF HEREDITY)

1. समान समान को जन्म देता है (Like Begets Like)- यह नियम प्रतिपादित करता है कि एक जाति का प्राणी अपनी ही जैसी जाति के प्राणी को जन्म देता है। मनुष्य मनुष्य को, घोड़ा घोड़े को तथा बन्दर बन्दर को ही जन्म देता है। यह नियम कहता है कि बच्चों में अपने माता-पिता के समान होने की प्रवृत्ति होती है। जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही उनके बच्चे होते हैं। बुद्धिमान माता-पिता के बच्चों में बुद्धिमान होने की सामान्य बुद्धि वाले माता-पिता बच्चों में सामान्य बुद्धि होने की तथा मंद बुद्धि माता-पिता के बच्चों में मंद बुद्धि वाले होने की प्रवृत्ति होती है। इसी तरह शारीरिक दृष्टि से सुन्दर माता-पिता के बच्चों में प्रायः सुन्दर होने की संभावना होती है, जबकि कुरूप माता-पिता के बच्चों में प्रायः कुरूप होने की संभावना रहती है।

2. विभिन्नता का नियम (Law of Variation)- विभिन्नता के नियम से अभिप्राय है कि बालक अपने माता-पिता के बिल्कुल समान न होकर उनसे कुछ-न-कुछ अंशों में भिन्न होते हैं। उनमें परस्पर रंग, बुद्धि एवं स्वभाव में भिन्नता होती है। वे कभी अपने माता-पिता की सत्य प्रतिलिपि नहीं होते। इस भिन्नता के कारण माता-पिता के उत्पादक कोषों के वंशसूत्रों के विभिन्न समुच्चय (Combinations) बनने के कारण वे भिन्न-भिन्न गुणों से युक्त संतानों को जन्म देते हैं।

3. प्रत्यागमन का नियम (Law of Regression)- यह नियम बताता है कि बच्चे अपने माता-पिता के विशिष्ट गुणों के स्थान पर सामान्य गुण ही ग्रहण करते हैं और सामान्य गुण सभी स्त्री-पुरुषों में होते हैं इसलिए वंशानुक्रम की प्रवृत्ति सामान्य तथा औसत की ओर होती है। इस प्रत्यागमन के दो कारण होते हैं:-


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