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संज्ञान का अर्थ, परिभाषाएँ व भूमिका और संज्ञानात्मक विकास, संज्ञानात्मक विकास का अर्थ

संज्ञान का अर्थ और अधिगम में इसकी भूमिका (MEANING OF COGNITION AND ITS ROLE IN LEARNING)


मनोवैज्ञानिक अवधारणा के अनुसार संज्ञान वह मानसिक क्रिया या प्रक्रिया है, जिसके द्वारा ज्ञानार्जन होता है, जिसमें ज्ञान या जानकारी, प्रत्यक्षीकरण, अंत: प्रज्ञा (intution) और तर्क सम्मिलित होते हैं। संज्ञान (cognition) शब्द का प्रयोग अक्सर अधिगम और चिन्तन को व्याख्यायित करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। कॉगनिशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के काँगनोसियर (Cognoticere) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है-'जानना या ज्ञान' (geting to know or knowledge)। यह शब्द पन्द्रहवाँ शताब्दी में ही प्रयोग में आने लगा था, परन्तु संज्ञानात्मक प्रक्रिया पर सबसे अधिक ध्यान तब गया जब महान दार्शनिक अरस्तु (Aristole) ने संज्ञानात्मक क्षेत्रों (cognitive areas) पर ध्यान देना शुरू किया जिसमें स्मृति (memory), प्रत्यक्षीकरण (perception) व मानसिक प्रतिरूप (mental imagery) सम्मिलित होते हैं।

संज्ञान शब्द का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। विज्ञान के क्षेत्र में, संज्ञान सभी मानसिक योग्यताओं का समूह है और ज्ञान से सम्बन्धित क्रिया करता है; जैसे-

  • अवधान (attention), 
  • स्मृति और कार्य स्मृति (memory and working memory), 
  • निर्णय और मूल्यांकन (judgement and evaluation), 
  • तर्क और गणना (reasoning and computation), 
  • समस्या समाधान और निर्णय (problem solving and decision making), 
  • अवबोध एवं भाषा निर्माण (comprehension and production of language) आदि। 

संज्ञान के विविध स्वरूप होते हैं, जैसे:-

  • चेतन और अचेतन (Conscious and unconscious)
  • मूर्त और अमूर्त (Concrete and abstract) 
  • अंतः प्रज्ञात्यात्मक और संकल्पनात्मक (intutive and conceptual)


संज्ञानात्मक प्रक्रिया में अस्तित्ववान ज्ञान (existing knowledge) के आधार पर नये ज्ञान को उत्पन्न करता है।

भिन्न-भिन्न परिप्रेक्ष्य में संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का विश्लेषण भिन्न-भिन्न तरह से किया जाता है; जैसे-

  • भाषा विज्ञान (linguistic), 
  • स्नायु विज्ञान (neuroscience), 
  • मनोरोग अध्ययन (psychiatry).. 
  • शिक्षाशास्त्र (education), 
  • दर्शनशास्त्र (philosophy), 
  • मानवशास्त्र (anthropology), 
  • जीव विज्ञान (biology),
  • कम्प्यूटर विज्ञान (computer science) आदि


संज्ञान की परिभाषाएँ (DEFINITIONS OF COGNITION)

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार संज्ञान की परिभाषा है-"विचार, अनुभव और इन्द्रियों के माध्यम से ज्ञान अर्जित करने और अवबोध की मानसिक क्रिया या प्रक्रियायें।" The mental action of processes of acquiring knowledge and understanding through thought, experience and the senses." -Definition of Cognition according to Oxford Dictionaries 

वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार-"जानकारी, ज्ञान और प्रत्यक्षीकरण की क्रिया संज्ञान है।" "Cognition is the act of knowing, knowledge and perception." - Webster Dictionary 

"संज्ञान' शब्द उन सभी प्रक्रियाओं का सन्दर्भ देता है जिनके द्वारा इन्द्रिय क्रियायें रूपान्तरित, मात्रा कम, व्याख्यायित एकत्रित, खोई शक्ति को अर्जित तथा प्रयुक्त होती है।" The term 'cognition' refers to all processes by which the sensory input is transformed. reduced, claborated, stored, recovered and used." -Neisser


संज्ञान की कोई निश्चित या निर्धारित परिभाषा नहीं हो सकती। संज्ञानात्मक प्रक्रिया की व्याख्या करने के लिए, संज्ञानात्मक प्रक्रिया की जटिलता को समझना आवश्यक है। संज्ञानात्मक प्रक्रिया को समझने के लिए सर्वप्रथम यह समझना आवश्यक है कि सामान्य दृष्टिकोण से व्यक्ति संसार का प्रत्यक्षीकरण कैसे करता है। हर क्षण व्यक्ति के चारों ओर सूचनाओं का जमघट होता है जिनके आधार पर वह निर्णय लेकर वातावरण के सम्बन्ध में अपनी धारणा बनाता है। अपनी इन्द्रियों के द्वारा आस-पास की सूचनाओं को ग्रहण करना और उन्हें निष्कर्षों में बदलना या क्रिया करना संज्ञान के द्वारा ही सम्भव है। आयु और अनुभव के आधार पर बालक इस दुनिया को समझने के लिए विकसित होता जाता है, इसे संज्ञानात्मक विकास (Cognitive development) कहा जाता है। संज्ञानात्मक विकास समझने की यही प्रक्रिया है, जिसमें बालक की ज्ञान अर्जित करने की जन्मजात वह योग्यता सम्मिलित होती है जो मस्तिष्क की संरचना तथा क्रियाओं से सम्बन्धित होती है। अतः संज्ञानात्मक विकास को सर्वोत्तम रूप से इस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है:-

"मस्तिष्क की चिन्तन और संगठन प्रणालियों का विकास संज्ञानात्मक विकास है, जिसमें भाषा, मानसिक प्रतिविम्व, चिन्तन, तर्क समस्या समाधान और स्मृति विकस सम्मिलित होते हैं। "

"Best definition of cognitive development is the development of the thinking' and 'organizing systems' of the brain. It involves language, mental imagery, thinking, reasoning. problem solving and memory development."


अधिगम में संज्ञान की भूमिका (ROLE OF COGNITION IN LEARNING)

संज्ञान और अधिगम दोनों ही 'शिक्षा मनोविज्ञान के अति महत्वपूर्ण केन्द्रीय प्रत्यय हैं। एक तरह से व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में कुछ भी सीखने में संज्ञान का प्रयोग करता है। शिक्षण अधिगम की 

प्रक्रिया को मजबूत बनाने के लिए अधिगम में संज्ञान की भूमिका को समझना आवश्यक है। अधिगम में संज्ञान की भूमिका को निम्न विन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है


1. बालक की अधिगम प्रक्रिया की सफलता पर उसका विकास निर्भर होता है। व्यापक रूप से अधिगम को 'व्यवहार में परिवर्तन' से व्याख्यायित किया जाता है, इस बात पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाता है कि बालक क्या सीखता है और कैसे सीखता है अर्थात वह कैसे और क्या ग्रहण करता है, उसकी वृद्धि और विकास कैसे हो रहा है। ये ग्राह्यता वृद्धि एवं विकास बालक के अन्दर से आता है। सभी आठ संज्ञानात्मक प्रक्रियायें अधिगम में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाती है। बालक किसी अधिगम-परिस्थिति (learning situations) में प्रवेश करता है तो उसके पास पहले के कुछ अनुभव होते हैं, इन अनुभवों और पूर्व बोध ज्ञान का प्रयोग कर बालक को कठिन से कठिन प्रकरण समझाया जा सकता है।


2. किसी भी नई सूचना को ग्रहण करने पर, संज्ञान की सहायता से व्यक्ति उस सूचना को प्रयोग में लाने का प्रयास करता है। उदाहरणार्थ, कोई पालतू बिल्ली घर के किसी फर्नीचर के किसी भाग को खरोंचने लगे, अगर फर्नीचर के उस भाग पर कोई अप्रिय द्रव छिड़क दिया जाए (जिसे बिल्ली पसन्द न करती हो), तो बिल्ली जल्दी ही समझ जाएगी कि जिस भाग को वह खरोंचना पसन्द करती थी, वहाँ से अप्रिय गन्ध आती है, तब उसकी संज्ञानात्मक प्रक्रिया उसे खरोंचने से रोक देगी। इसी प्रकार सुखद अनुभव प्राप्त करने पर बालक की सीखने की आकांक्षा और योग्यता दोनों का विकास होता है और अप्रिय अनुभवों से बालक उस कार्य को त्याग देता है।


3. अधिगम और संज्ञान सभी के मस्तिष्क में होता है, परन्तु कभी-कभी दोनों को सम्बद्ध करने के लिए कोचिंग की आवश्यकता होती है। अध्यापक बालक को अक्षर का उच्चारण सिखाता है, लिखना सिखाता है। जैसे-जैसे विद्यार्थी प्रगति करता जाता है वह लम्बे और जटिल शब्दों को सीखता है और लिखता है, फिर धीरे-धीरे वाक्य बनाने और लिखने लगता है।


4. कुछ संज्ञानात्मक योग्यताएँ अधिगम के परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। जी. ए. मिलर (1956) के अनुसार क्रियाशील स्मृति (Working memory) सीमित मात्रा में सूचनाओं को, थोड़े समय तक सक्रिय रखती है। क्रियाशील स्मृति की अपर्याप्त मात्रा बहुत से कार्यों के निष्पादन को प्रभावित करती है; जैसे-सामान्य भाषा का प्रयोग (natural language use), कौशल अर्जन (skill aquisition) आदि।


अधिगम के परिप्रेक्ष्य में तर्क की योग्यता विशेष रूप से अपना महत्व रखती है। बालक के सामने कोई जटिल समस्या उत्पन्न होती है, तो वह अपने पिछले अनुभवों के आधार पर समाधान के लिए परिकल्पना बनाता है। जिन बालकों में आगमन तर्क कौशल (inductive reasoning skill) अच्छा होता है, वे अतीत के नमूने/पैटर्न (patterm) का सामान्यीकरण करने में सफल हो जाते हैं। इससे क्रियाशील स्मृति पर दबाव कम हो जाता है और अधिगम प्रक्रिया में दक्षता बढ़ जाती है।


संज्ञानात्मक विकास (COGNITIVE DEVELOPMENT)

'संज्ञानात्मक विकास' अध्यापकों के लिए अति महत्वपूर्ण क्षेत्र है। अधिगम और संज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। अधिगम को ज्ञान व कौशल के अर्जन की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, इस ज्ञानार्जन व कौशल-अर्जन की प्रक्रिया में संज्ञान निहित होता है। संज्ञान में संवेदन (sensation), प्रत्यक्षण (perception), कल्पना (imagery), धारणा (retention), पुनमरण (recall), समस्या समाधान (problem solving), चिन्तन (thinking), तर्क (reasoning) आदि मानसिक क्रियायें सम्मिलित होती है। पठन-पाठन का स्तर अनुरूप होने पर बालकों के संज्ञानात्मक विकास को गति और दिशा प्राप्त होती है। प्रत्येक अध्यापक को बालक के संज्ञानात्मक विकास का ज्ञान होना चाहिए।


संज्ञानात्मक विकास का अर्थ (MEANING OF COGNITIVE DEVELOPMENT)

संज्ञानात्मक विकास का पहला सम्बन्ध उन तरीकों होता है जिनसे बालक की आन्तरिक मानसिक शक्तियाँ अर्जित, विकसित और अवसर के अनुसार प्रयुक्त होती है, जैसे-समस्या समाधान, स्मृति और भाषा शैशवावस्था में सीखने, याद करने और सूचनाओं को प्रतीक के रूप में प्रयुक्त करने को क्षमता बहुत सामान्य स्तर पर होती है, वे छोटे-छोटे संज्ञानात्मक कार्य करने में सफल होते हैं; जैसे-सजीव और निर्जीव में अन्तर करना, कुछ वस्तुओं को पहचानना आदि। बाल्यावस्था के दौरान अधिगम और सूचना सम्बद्ध कार्य की गति तीव्र हो जाती है, याद रखने की अवधि बढ़ती है, संकेतों को प्रयुक्त करने की क्षमता का विकास होता है। किशोरावस्था की ओर बढ़ते बालक सूक्ष्म चिन्तन की ओर भी बढ़ने लगते हैं। अनुभव और अधिगम संज्ञानात्मक विकास में सहायक होते हैं। संज्ञानात्मक विकास से तात्पर्य बालकों में किसी संवेदी सूचनाओं को ग्रहण करके उस पर चिन्तन करने तथा क्रमिक रूप से उसे इस लायक बना देने से होता है जिसका प्रयोग विभिन्न परिस्थितियों में समस्या समाधान के लिए किया जा सके। इस प्रकार देखा जाय तो संज्ञानात्मक विकास मानसिक विकास से सम्बद्ध होता है, मानसिक विकास से अलग करके संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन नहीं किया जा सकता।

संज्ञानात्मक विकास के सम्बन्ध में जीन पियाजे (Jean Piaget) का अध्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। अपने अध्ययनों के आधार पर पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त प्रतिपादित किया, जो शिक्षा और शिक्षकों के लिए मील का पत्थर बना।

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