मातृभाषा की परिभाषा
प्रत्येक भाषा का ज्ञान उसे व्यावहारिक रूप प्रदान करने से होता है। किसी भी विषय की वस्तु के अधिगम में अभ्यास का अपना महत्व है। भाषा-ज्ञान अभ्यास के माध्यम से किया जाता है। बालक जब आँखें खोलता है, उस समय उसका भाषा-ज्ञान रहता है। वह अपने माँ बाप को, उनके क्रिया-कलापों को अपने जीवन की आरंभिक बेला में देखता है और उसी प्रकार की क्रिया करने का प्रयास करता है। जब बालक अपने माता-पिता को, सगे-संबंधियों को भाषा प्रयोग करते सुनता है, वह भी माँ-बाप से, अन्यों से सुनी गई भाषा का अनुकरण कर प्रयोग आरंभ कर देता है। यह उसकी मातृभाषा होती है।
मातृभाषा का अर्थ- मातृभाषा का शाब्दिक अर्थ है "माँ से सीखी हुई भाषा"। बालक यदि माता-पिता के अनुकरण से किसी विभाषा को सीखता है, तो वह विभाषा ही उसकी मातृभाषा कही जाती है। रघुनाथ सफाला के शब्दों में मातृभाषा किसी वर्ग समुदाय' समाज या प्रान्त की बोली जाने वाली भाषा उसके सदस्यों की मातृभाषा है। बच्चा जन्म लेकर अपनी माता से उसी भाषा को ग्रहण करता है। आगे चलकर घर के भीतर और बाहर, मित्रों में विद्यालय में, निकटवर्ती समाज में वह इसी भाषा का प्रयोग करता है। माता के समान मातृभाषा वन्दनीय है। मातृभाषा की शिक्षा परमावश्यक है। अधिकतम शिक्षा और ज्ञान मातृभाषा द्वारा ही सुलभ हो सकता है।
मातृभाषा स्वाभाविक भाषा है। अतः इस भाषा का ज्ञान परम आवश्यक है। वास्तव में, मातृभाषा का अर्थ है-"क्षेत्र विशेष में समाज स्वीकृत परिनिष्ठत भाषा, जिसके माध्यम से सामाजिक कार्य संपन्न होते हैं।" दूसरे शब्दों में शिक्षा क्षेत्र में मातृभाषा का मतलब क्षेत्र विशेष की उस भाषा से होता है, जिसके द्वारा उस क्षेत्र के प्रबुध-जन मौखिक एवं लिखित रूप से विचार-विनिमय का काम करते हैं, वह मातृभाषा कहलाता है। पंजाब के बालकों की भाषा पंजाबी और बंगाल के बालकों की भाषा बंगाली होती है।
अपने जन्मकाल में बालक जिस क्षेत्र में रहता है और अपने जीवन के प्रारंभिक बसंत की मधुमय बेला को व्यतीत करता है, वहाँ खेलता-कूदता है, भ्रमण करता है, उस क्षेत्र की भाषा को वह अच्छी तरह से हृदयंगम कर आत्मसात कर सीख लेता है, वही उसकी मातृभाषा होती है।
बलार्ड ने ठीक कहा है- 'माता-पिता से सुनकर सीखी हुई भाषा (घर की बोली) को माता की भाषा (मदर्स टंग) और समाज द्वारा स्वीकृत मानक भाषा को मातृभाषा (मदर टंग) कहा है।"
बलार्ड के कथनानुसार समाज द्वारा स्वीकृत मानक भाषा ही मातृभाषा है। (यहाँ मदर्स टंग और मदर टंक के अंतर पर ध्यान देना है।)
मातृभाषा माता की बोली, मदर्स टंग का ही परिनिष्ठित साहित्यिक रूप होती है। भाषा-शिक्षण की दृष्टि से इस परिनिष्ठित मातृभाषा का ही महत्व है, क्योंकि यह हमारे साहित्य, ज्ञान-विज्ञान की भाषा है, वही शिक्षित जनोचित शिष्ट भाषा है। वही पत्र-पत्रिकाओं की भाषा है, वही समस्त सामाजिक क्रिया-कलापों के संचार की भाषा है। यही भाषा हमारी सहज अभिव्यक्ति का साधन है और उसी भाषा में हमारे भाव एवं विचार बनते और स्फुटित होते हैं।
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