Recents in Beach

समाज का अर्थ, विशेषताएँ, समाज के कार्य Meaning of Society, Characteristics and its Functions

लिंग तथा लैंगिकता के सामाजिक परिप्रेक्ष्य (SOCIAL PERSPECTIVES OF GENDER AND SEX)

लिंग तथा लैगिकता के परिप्रेक्ष्य में ताने-बाने की भूमिका अत्यावश्यक है, क्योंकि मनेविज्ञान भी चाहे बालक हो या बालिका, उसके लिए आनुवंशिकता के साथ-ही-साथ वातावरण की आवश्यकता को भी स्वीकार करता है। लिंग तथा लैंगिकता को हमारे आस-पास का वातावरण अर्थात् समाज काफी प्रभावित करता है। समाज क्या है इसकी विशेषतायें क्या है, पहले यह जान लेना आवश्यक है। 


समाज का अर्थ (Meaning of Society)

समाज हेतु आंग्ल भाषा में 'Society' शब्द प्रयुक्त किया जाता है, जिसका सामान्य अर्थ मनुष्यों के समूह से होता है। व्यक्तियों के मध्य स्थापित सम्बन्धों में संगठित रूप को इस प्रकार समाज कहते हैं।


विशेषताएँ (Characteristics)

समाज की परिभाषाओं के आधार पर निम्नांकित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हूँ..

1. समाज व्यक्तियों का समूह है।

2. समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। 

3. समाज संगठित रूप है।

4. समाज व्यक्तियों के मध्य होने वाली अन्तर्क्रिया को द्योतित करता है। 

5. समाज स्वयं संगठन है।

6. सम्बन्धों का संगठित रूप ही समाज है। 

7. समाज में व्यक्ति परस्पर जुड़े होते हैं।


समाज के कार्य (Functions of Society)

समाज कई प्रकार के होते हैं, जैसे-परम्परागत समाज, बन्द समाज मुक्त समाज आदिम समाज, सभ्य समाज, सरल समाज, जटिल समाज, पूँजीवादी समाज, समाजवादी समाज, प्राचीन समाज, आधुनिक समाज आदि। समाज विभिन्न प्रकार के कार्यों का सम्पादन करता है जिसके कारण ही व्यक्ति समाज से अलग रहकर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है।

समाज के कुछ कार्य निम्नवत् है

सामाजिक कार्य

सांस्कृतिक कार्य

शैक्षिक कार्य

आर्थिक कार्य

नैतिक एवं चारित्रिक कार्य

राजनैतिक कार्य

सुरक्षात्मक कार्य

सांवेगिक कार्य


1. सामाजिक कार्य—समाज का प्रमुख कार्य सामाजिक कार्य प्रत्येक समाज अपनी सामाजिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियम, रीति-रिवाज तथा परम्पराओं का पालन करना अपने सदस्यों को सिखाते हैं। समाज में रहकर ही बालक तथा बालिकायें सामाजिक व्यवस्था का पालन कर समाज के सक्रिय सदस्य बनते है जिसे हम समाजीकरण की प्रक्रिया के नाम से भी जानते है। इस प्रकार समाज से पृथक रहकर समाजीकरण नहीं हो सकता, अतः इस दृष्टि से समाज महत्त्वपूर्ण है।


2. सांस्कृतिक कार्य–प्रत्येक समाज की अपनी संस्कृति होती है जिसके आधार पर वह अपने बालक तथा बालिकाओं को सांस्कृतिक शिक्षा प्रदान करने का कार्य करता है। लिग तथा लैंगिकता पर समाज की संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जैसे विवाह की रस्में तथा बालक-बालिकाओं के वस्त्र आदि।


3. शैक्षिक कार्य-समाज शिक्षा का अनौपचारिक अभिकरण है। वह विद्यालय के साथ मिलकर तथा अन्य अभिकरणों की सहायता तथा पृथक रूप से भी शिक्षा के प्रचार-प्रसार का कार्य करता है। समाज का शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान है. सुशिक्षित तथा जागरूक समाजों में शैक्षिक उन्नति अधिक होती है। सामान्य विद्यालयी शिक्षा में योगदान देने के साथ-साथ बालकों के शारीरिक व मानसिक विकास हेतु वातावरण सृजित करता है। इस हेतु समाज द्वारा वित्त की व्यवस्था कर विद्यालयों, पार्को इत्यादि की व्यवस्था की जाती है। समाज के द्वारा सभी वर्गों की शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, मन्दबुद्धि और विकलांग बालकों, जैसे विशिष्ट बालकों की शिक्षा के आयोजन के प्रति सकारात्मक प्रयास किये जाते हैं।


4. आर्थिक कार्य–समाज का प्रमुख कार्य अपने सदस्यों की आर्थिक गतिविधियों का संचालन करना है। आर्थिक उन्नति तथा विकास के लिए समाज कुछ नियमों का संचालन करता है जिसके अनुरूप आर्थिक क्रियाकलापों का आयोजन किया जाता है और समाज अपने सदस्यों की आर्थिक गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने, उन्नति हेतु वातावरण का सृजन भी करता है।


5. नैतिक एवं चारित्रिक कार्य समाज अपने सदस्यों की सर्वागीण उन्नति का प्रयास करता है और इसी क्रम में वह अपने सदस्यों की नैतिक तथा चारित्रिक उन्नति का प्रयास भी करता है। इस हेतु समाज उच्च आदर्शों तथा जीवन-मूल्यों को प्रोत्साहित करता है तथा साथ-ही-साथ ऐसे आदर्शों का प्रस्तुतीकरण भी करता है।


6. राजनैतिक कार्य समाज अपने राजनैतिक कार्यों के अन्तर्गत अपने सदस्यों को राजनैतिक रूप से जाग्रत करने का कार्य करता है, उनकी राजनैतिक विचारधारा के निर्माण का कार्य भी सम्पन्न करता है।


7. सुरक्षात्मक कार्य समाज की संरचना और संगठन का महत्व इससे भी अत्यधिक है. क्योंकि यह अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा का कार्य सम्पन्न करता है। समाज में रहकर ही व्यक्ति अपने को सुरक्षित महसूस करता है, चाहे वह शिशु हो या कोई प्रौद। इस प्रकार समाज सामाजिक सुरक्षा का कार्य सम्पन्न करता है।


8. सांवेगिक कार्य-समाज अपने सदस्यों की मनोवैज्ञानिक तथा सावैगिक सुरक्षा का कार्य सम्पन्न करता है। इसीलिए समाज में रहकर ही व्यक्ति अपना सर्वांगीण विकास कर पाता है। 


लिंग तथा लैंगिकता के सामाजिक परिप्रेक्ष्य और उसके महत्व का आकलन अग्रवत् किया जा रहा है

1. पालन-पोषण

2 वातावरण सृजन

3. सुरक्षात्मक कार्य

4 सर्वांगीण विकास

5 नैतिक तथा चारित्रिक विकास

6. समाजीकरण

7 अनौपचारिक शिक्षा

8. आदतों तथा रुचियों का विकास 


1. पालन-पोषण – बालक तथा बालिकाओं के पालन-पोषण पर समाज का प्रभाव अत्यधिक पड़ता है। मनुष्य शिशु जन्म के कुछ समय तक अपने परिवार तथा समाज पर निर्भर रहता है और जब तक वह जीवित भी रहता है तब तक समाज पर ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निर्भर रहता है। समाज का स्वरूप यदि बन्द समाज का होगा तो लिंग के आधार पर बालक तथा बालिकाओं के पालन-पोषण में अन्तर होगा और यदि खुला तथा प्रगति उन्मुख समाज होगा तो उस समाज में लिंग तथा लैंगिकता विषयी दृष्टिकोण में व्यापकता और खुलापन होगा।


2. वातावरण सृजन–समाज बालक तथा बालिकाओं के लिए जैसा वातावरण सृजित करेगा, उनका विकास उसी प्रकार का होगा। समाज में लिंग तथा लैंगिकता के प्रति उचित दृष्टिकोण नहीं है तो ऐसे वातावरण में भेदभाव और भावना ग्रन्थियों के पनपने की आशका अधिक होती है, और ऐसा समाज लिंग के आधार पर भेदभाव न किया जाकर स्वस्थ वातावरण सृजित किया जा रहा हो वहाँ पर परस्पर अन्तर्क्रिया तथा वैचारिक आदान-प्रदान का वातावरण सृजित होता है।


3. सुरक्षात्मक कार्य समाज बालक तथा बालिकाओं को शारीरिक, सांवेगिक तथा मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करने का कार्य सम्पन्न करता है जिससे सुरक्षात्मक अनुभूति आती है। सभ्य समाज बालकों की अपेक्षा बालिकाओं की सुरक्षा हेतु अधिक सचेष्ट होते है और बालकों में पारम्भ से ही बालिकाओं के प्रति आदर-सम्मान की भावना भरते है।


4. सर्वांगीण विकास समाज अपने सभी सदस्यों के सर्वांगीण विकास का कार्य सम्पन्न करता है। इस हेतु समाज तरह-तरह के सामाजिक आयोजन करता है और अपने सदस्यों को उनमें भाग लेने हेतु अवसर प्रदान करता है। बालक और बालिकाओं में लिंगाधारित भेदभाव न करके समाज को समान रूप से उनके सर्वांगीण विकास हेतु अवसर प्रदान करने चाहिए।


5. नैतिक तथा चारित्रिक विकास समाज बालक तथा बालिकाओं को समाजोपयोगी तथा आदर्श नागरिक बनाने हेतु उनके नैतिक तथा चारित्रिक विकास पर बल देता है। नैतिक तथा चारित्रिक गुण बालक तथा बालिकाओं में कुछ सामान्य रूप से तथा कुछ विशिष्ट रूप से पाये जाते है। बालिकाओं में जिन नैतिक तथा चारित्रिक गुणों की अनिवार्यता होती है वे आवश्यक नहीं कि बालकों में भी हो और बालकों में पाये जाने वाले नैतिक तथा चारित्रिक गुण आवश्यक नहीं कि वे बालिकाओं में भी पाये जायें। इस प्रकर नैतिक तथा चारित्रिक विकास का महत्वपूर्ण कार्य समाज लिंग तथा लैंगिकता को दृष्टिगत रखते हुए करता है।


6. समाजीकरण-समाज में रहकर ही बालक या बालिका का समाजीकरण होता है। समाजीकरण समाज के साथ अनुकूलन कर अपना विकास करने, सामाजिक नियम कानूनों को मानने की प्रक्रिया है। इसी प्रक्रिया के कारण बालक तथा बालिकायें समाज के उपयोगी सदस्य बन सकते है। समाजीकरण की प्रक्रिया में खुले समाज में बालकों की ही भाँति बालिकाओं को भी समान अवसर प्रदान किये जाते है, जिससे उनके समाजीकरण की प्रक्रिया तीव्र गति से होती है और इसके विपरीत बन्द तथा रूढ़िवादी समाज में बालिकाओं को सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने की स्वतन्त्रता नहीं होने के कारण उनका समाजीकरण कुन्द हो जाता है। इस प्रकार लिंग तथा लैगिकता के सामाजिक परिप्रेक्ष्य के अन्तर्गत समाज महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


7. अनौपचारिक शिक्षा समाज अपने सदस्यों की अनौपचारिक शिक्षा का सशक्त तथा प्रभावी साधन है। व्यवहार, ज्ञान, वाग-व्यवहार, संस्कृति, धर्म इत्यादि की शिक्षा अनौपचारिक रूप से समाज द्वारा प्राप्त होती है। समाज बालक तथा बालिकाओं की अनौपचारिक शिक्षा के साथ-साथ उनकी औपचारिक शिक्षा की भी व्यवस्था करता है। वैसे भी शिक्षा तथा समाज के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है जिसे शिक्षा समाजशास्त्र के द्वारा अध्ययन किया जाता है। जागरूक तथा शिक्षित समाज में लिंग तथा लैंगिकता के विषयों पर अभेदपूर्ण वैज्ञानिक तथा स्पष्ट दृष्टिकोण रखा जाता है जिससे स्वस्थ और प्रगतिशील समाज का निर्माण होता है वहीं परम्परागत रूद समाजों में बालिकाओं की औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा की अवहेलना की जाती है।


8. आदतों तथा रुचियों का विकास समाज जैसा होगा उसके आदर्श जिस प्रकार के होंगे, वह अपने व्यक्तियों में उसी प्रकार की आदतों तथा रुचियों को प्रोत्साहित करेगा। बालक तथा बालिकाओं की रुचियों और व्यक्तिगत विभिन्नताओं (Individual differences) के आधार पर भी प्रत्येक व्यक्ति की आदत और रुचियों में भिन्नता पायी जाती है, जिसमें से अच्छी सकारात्मक तथा समाजोपयोगी आदतों तथा रुचियों को समाज द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है। ये लिंग तथा लैंगिकता के परिप्रेक्ष्य में भी दृष्टिगत होती है।

Post a Comment

0 Comments

close