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Teaching Aptitude Notes in Hindi 02


शिक्षा का उद्देश्य

शिक्षा का जीवन के साथ घनिष्ठ संबंध है। परिस्थिति के अनुसार लोगों की जैसी आवश्यकताएँ तथा अकांक्षाएँ होती हैं। शिक्षा के उद्देश्य में उसी के अनुसार परिवर्तन होता है। वर्त्तमान में शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:- 


1. जीविकोपार्जन का उद्देश्य-आधुनिक युग की प्रमुख समस्या जीविकोपार्जन है। इस शिक्षा के नराकरण के लिए ही वह शिक्षा ग्रहण करता है। सभी प्रकार की प्राविधिक अथवा व्यावहारिक शिक्षा जीविकोपार्जन शिक्षा के ही अन्तर्गत आ जाती है। लोगों की आम धारणा यह है कि जो शिक्षा बालकों को जीविकोपार्जन के योग्य नहीं बनाती वह वास्तविक शिक्षा नहीं है। जनसंख्या वृद्धि तथा समाधानों की कमी के कारण यही जन-जीवन की प्रमुख समस्या बन गई है।

रेमन्ट जीविकोपार्जन के उद्देश्य के समर्थक हैं और उनका कहना है कि प्रत्येक नागरिक को स्वयं तथा अपने आश्रितों को भरण-पोषण करना चाहिए । व्यक्ति के नैतिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए भी यह आवश्यक है कि वह स्वस्थ्य हो और उसे भरपेट भोजन मिलता रहे ।

डॉ जाकिर हुसैन ने इस उद्देश्य पर बल देते हुए लिखा है— "राज्य का सर्वप्रथम उद्देश्य होगा कि वह अपने नागरिकों को किसी कार्य के लिए समाज के किसी कार्य के लिए शिक्षित करें।”

आज के भौतिकवादी युग में आर्थिक उन्नति को महत्त्व दिया जा रहा है और इसका आधार भी व्यावसायिक कुशलता है।

डिवी का विचार है कि- "यदि एक व्यक्ति अपनी जीविका नहीं कमा सकता तो यह गंभीर भय है कि अपने चरित्र का पतन करे और दूसरों को हानि पहुँचाए।"


2. बौद्धिक विकास का उद्देश्य कुछ शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य अधिकतम बौद्धिक या मानसिक विकास से है। इसी से मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है। मनुष्य के जीवन का मूल प्रयोजन सत्य या ईश्वर की प्राप्ति है, जो ज्ञान प्राप्त होने पर ही संभव है। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में वह ज्ञान माना जाता था जो ब्रह्म की प्राप्ति में सहायक हो ।

ज्ञान को शिक्षा का उद्देश्य बताने वालों में सुकरात, प्लेटो, अरस्तु, दाँतें, कॉमोनियम, वेकन आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।


3. पूर्ण जीवन की तैयारी-प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री हरबर्ट के अनुसार शिक्षा से मनुष्य को इस योग्य बनना चाहिए कि वह पूर्ण जीवन बीता सके। पूर्ण जीवन बिताने के लिए मनुष्य को निम्नलिखित चार प्रकार के ज्ञान प्राप्त करने चाहिए

(i) जिस ज्ञान का संबंध सीधे जीवन-रक्षा से हो ।

(ii) जो ज्ञान जीवन-रक्षा में अप्रत्यक्ष रूप से सहायक हो ।

(iii) जो ज्ञान संतान की उत्पत्ति तथा उसके पालन-पोषण हेतु जरूरी हो

(iv) जो ज्ञान सामाजिक और राजनीतिक जीवन के लिए आवश्यक हो। 

उपर्युक्त चारों प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति की हरबर्ट स्पेंसर ने शिक्षा को उद्देश्य माना है। 


4. संतुलित विकास शिक्षा का उद्देश्य, फ्रोबेल जैसे शिक्षाशास्त्रियों के विचारानुसार व्यक्ति का संतुलित विकास करना है। इस सिद्धांत के अनुसार, शिक्षा के द्वारा मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और नैतिक तीनों पक्षों का संतुलित विकास होना चाहिए।


5. नैतिकता की प्राप्ति प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री हरबर्ट के अनुसार, शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य नैतिकता की प्राप्ति है। इसके अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को नैतिक बनाना है। यहाँ हरबर्ट ने 'नैतिकता' शब्द का व्यवहार व्यापक अर्थ में किया है। नैतिकता में सभी प्रकार के अच्छे सामाजिक आचरण सम्मिलित हैं।


6. वैयक्तिक विकास-यह उद्देश्य इस दार्शनिक मान्यता पर आधारित है कि व्यक्ति का स्थान समाज से ऊपर है। इस मान्यता के अनुसार, समाज का निर्माण या विकास व्यक्ति के जीवन को सुखमय एवं समृद्ध बनाने में ही सामाजिक संस्थाओं की सार्थकता है। विद्यालय भी समाज का एक अंग है। इसका कार्य बालकों के समुचित विकास के उपयुक्त वातावरण का निर्माण करना है। अतः शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का उत्कर्ष होना चाहिए।


7. सामाजिक उद्देश्य-सामाजिक उद्देश्य की मूलभूत मान्यता यह है कि मानव संसार में मानव समाज का प्रमुख स्थान है और व्यक्ति का गौण। व्यक्ति समाज का ही अंग है तथा समाज से अलग उसके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अतः व्यक्ति का हित समाज के हित में समाहित है। इसलिए शिक्षा का उद्देश्य यह भी है कि बालकों में प्रारंभ ही समाज के प्रति दायित्व की भावना का विकास हो ।


8. सांस्कृतिक उद्देश्य-कुछ विद्वान बालकों का सांस्कृतिक विकास करना शिक्षा का उद्देश्य मानते हैं, क्योंकि संस्कृति ही मनुष्य को सभ्य तथा सुसंस्कृत बनायी है। इस शिक्षा का व्यावहारिक रूप यूनान के एथेन्स की शिक्षा में स्पष्ट रूप से प्रकट हुआ। यह शिक्षा उदार शिक्षा के नाम से विख्यात है। महात्मा गांधी ने इस उद्देश्य को बहुत महत्व दिया है।


9. चरित्र-निर्माण का उद्देश्य-अनेक शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य सुंदर और सुदृढ़ चरित्र का निर्माण करना है। अनेक शिक्षाशास्त्री, जैसे रॉस, रसेल, रेमार्ट आदि ने भी शिक्षा के उद्देश्य के रूप में चरित्र निर्माण को महत्वपूर्ण माना है। रसेल ने चरित्र के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि "मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता और सबसे बड़ा रक्षक चरित्र है, शिक्षा नहीं"।


10. लोकतांत्रिक भारत में नागरिकता की शिक्षा- भारत में नागरिकता की शिक्षा प्रदान करने की नितांत आवश्यकता है, ताकि आज के नवोदित भारतीय समाज के नागरिकों को अटूट देश-प्रेम, व्यापाक सामाजिक आस्था, भावात्मक संतुलन तथा शारीरिक और मानसिक दृष्टियों से बालक-बालिकाओं को स्वस्थ, राजनीतिक दायित्व आदि में कुशल बनाया जा सके।


11. शिक्षा का सर्वाधिक उपयुक्त उद्देश्य शिक्षा के सभी उद्देश्य अपने आप में सार्थक तथा उपयोगी हैं। परंतु मेरे विचार से जीविकोपार्जन ही शिक्षा का सबसे उपयुक्त उद्देश्य है। विशेषतः भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए यह सर्वमान्य है। समुचित जीविकोपार्जन के बिना कोई भी व्यक्ति न तो अपने समाज की चिंता कर सकता है न राष्ट्र की। अतः आज जीविकोपार्जन ही शिक्षा का सबसे उपयोगी उद्देश्य है। डिवी जैसे शिक्षाशास्त्री ने भी इसी उद्देश्य को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना है।

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