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पारिस्थितिक तंत्र से आप क्या समझते है ? पारिस्थितिक तंत्र की संरचना एवं कार्य का वर्णन करें।


Q. पारिस्थितिक तंत्र से आप क्या समझते है ? इसके प्रकार की विवेचना करे। What do you understand by eco-system? Discuss its types. 

उत्तर-इकोसिस्टम (Eco-system) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम इंगलैण्ड के एक इकोलोजिस्ट ए. जी. टेन्सले ने सन् 1935 में किया था। टेन्सले के अनुसार इकोसिस्टम वातावरण के सभी जैवकि एवं अनैविक घटकों के पूर्ण समन्वय से बनी प्रणाली (system) है। 

"The system resulting form the integration of all the living and non living factors of the environment." इकोसिस्टम शब्द में Eco शब्द से अभिप्राय वातावरण से है तथा System का अर्थ है परस्पर क्रियाशील तथा परस्पर जटिल तन्त्र। दूसरे शब्दों में, “वातावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों अथवा जीवों एवं वातावरण की अंतक्रियाओं के फलस्वरूप बने तन्त्र को ही पारिस्थितिक तन्त्र कहते हैं।"

विभिन्न Ecologists द्वारा Ecosystem के लिये कुछ अलग प्रकार के शब्दों का भी उपयोग किया गया है। ये शब्द निम्नलिखित हैं:-

(i) बायोसौनोसिस (Biocoenosis) — यह शब्द कार्ल मोबियस (Karl Mobias, 1879) द्वारा प्रयोग में लाया गया था।

(ii) माइक्रोकोस्म (Microcosm) – यह शब्द सफोर्बस (Saforb, 1887) द्वारा प्रयोग में लाया गया था।

(iii) जियोबायोसीनोसिस (Geobiocoenosis) यह शब्द व्ही. व्ही. डकशेव (V.V. Dokuchaev, 1846& 1903) द्वारा प्रयोग में लाया गया था।

(iv) होलोसीन (Holocoen) इस शब्द को फ्रेडरिकस (Friedericsh, 1930) ने दिया था।

(v) बायोसिस्टम (Biosystem) थीनमेन (Thienemann, 1939) द्वारा इस शब्द का प्रयोग किया गया था। (vi) बायोइनर्ट बॉडी (Bioenert body) वरनाइस्की (Vernadsky, 1944) ने इस शब्द का प्रयोग किया था। (vii) इकोकॉस्म (Ecocosm) आर मिश्रा (R. Mishra, 1968) ने यह शब्द दिया था।

उपरोक्त शब्दों का अधिक प्रचलन तन्त्र नहीं है। Ecosystem ही सर्वाधिक प्रचलित शब्द है। 

पृथ्वी एक विशाल पारिस्थितिक तन्त्र है। यहाँ पर जैविक एवं अजैविक घटक समान रूप से एक-दूसरे से अंतर्क्रिया करते हैं जिसके कारण इस पारिस्थितिक तन्त्र में संरचनात्मक एवं क्रियात्मक परिवर्तन होते हैं। पृथ्वी के विशाल पारिस्थितिक तन्त्र को जैव मंडल (Biosphere) कहते हैं। जैव मंडल का अध्ययन करना अत्यन्त कठिन होता है। इस कारण अध्ययन की सुविधा के लिये इसे कृत्रिम रूप से छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित कर अध्ययन किया जाता है। ये इकाइयाँ स्थलीय, जलीय तथा मानव निर्मित पारिस्थितिक तन्त्र की हो सकती हैं। इस प्रकार एक Ecosystem एक छोटा तालाब हो सकता है, एक खेत हो सकता है, एक मरुस्थल हो सकता है, एक जंगल हो सकता है अथवा एक महासमुद्र हो सकता है। बहुत बड़े पारिस्थितिक तन्त्र को Biome कहते हैं, जैसे-सागर, महासागर, सम्पूर्ण वन क्षेत्र आदि। सबसे छोटा पारिस्थितिक तन्त्र एक वृक्ष या एक जल की बूँद हो सकती है।

Ecosystem सामान्यतः एक खुला तंत्र होता है जिसमें सामग्री (materials) एवं ऊर्जा (energy) का निरन्तर प्रवाह (influx) एवं हानि (loss) होता रहता है। 


पारिस्थितिक तन्त्र प्रकार (Types of Ecosystem)

Ecosystem को निम्नलिखित दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है 

(1) प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र,

(2) कृत्रिम (मानव निर्मित) पारिस्थितिक तंत्र।


(1) प्राकृतिक पारिस्थितिक तंब (Natural Ecosystem) इस प्रकार के Ecosystem प्राकृतिक दशाओं में कार्य करते हैं तथा इनमें मनुष्य का हस्तक्षेप नहीं होता है या बहुत ही कम होता है। 

प्राकृतिक आवास के आधार पर प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र को निम्न प्रकारों में बाँटा जा सकता है:-

(अ) स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र (Terrestrial Ecosystem) यह Ecosystem स्थल पर विकसित होता है। कुछ प्रमुख स्थलीय Ecosystem निम्नलिखित हैं-

(i) घास भूमि पारिस्थितिक तन्त्र, 

(ii) वन पारिस्थितिक तन्त्र, 

(iii) मरुस्थलीय पारिस्थितिक तन्त्र, 

(iv) पहाड़ी पारिस्थितिक तन्त्र।


(ब) जलीय पारिस्थितिक तन्त्र (Aquatic Ecosystem) यह जल में विकसित होता है। इसे निम्न दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है:-

(i) स्वच्छ जल पारिस्थितिक तन्त्र (Fresh Water Ecosystem)—ऐसा जल जिसमें लवणों की मात्रा नहीं पायी जाती है, स्वच्छ जल कहलाता है। नदी, तालाब, झील, झरना, दलदल आदि का Ecosystem स्वच्छ जल पारिस्थितिक तंत्र होता है।

(ii) सामुद्रिक जल पारिस्थितिक तंत्र (Marine Water Ecosystem)— यह लवणीय जल में विकसित होता है। समुद्र तथा महासागर का पारिस्थितिक तंत्र सामुद्रिक जल पारिस्थितिक तंत्र होता है।


(2) कृत्रिम पारिस्थितिक तन्त्र (Anificial Ecosystem):- इस प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण मनुष्य स्वयं अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये करता है। इस कारण इसे मानव निर्मित पारिस्थितिक तंत्र भी कहते हैं। इसके उदाहरण निम्नलिखित हैं:-

(a) कृषि पारिस्थितिक तन्त्र (Agro Ecosystem)

(b) जल जीवशाला पारिस्थितिक तन्त्र (Aquarium Ecosystem) 


Q. पारिस्थितिक तंत्र की संरचना एवं कार्य का वर्णन करें। (Describe the structure and function of eco-system.) 

उत्तर-  पारिस्थितक तंत्र की संरचना से अभिप्राय निम्नलिखित तीन तथ्यों से है:-

1. जैविक समुदाय का संगठन-इसके अन्तर्गत जीवों की जातियों की संख्या, जीवों की संख्या, जैवभार (Bio-mass), जीवों का जीवन इतिहास (Life History) तथा उनके वितरण का अध्ययन किया जाता है।

2. अजैविक घटक; जैसे पोषक तत्त्व, जल की मात्रा तथा वितरण।

3. जीवों के चारों ओर का भौतिक वातावरण तथा उसकी सीमायें जैसे- तापक्रम, प्रकाश, आवास आदि।


पारिस्थितिक तन्त्र (Ecosystem) के कार्य से अभिप्राय निम्नलिखित तीन तथ्यों से है:- 

1. जैविक ऊर्जा की दर अर्थात् जैविक समुदाय के उत्पादन तथा श्वसन

2. पौष्टिक चक्र (Nutrient Cycles) की दरें।

3. पर्यावरण के द्वारा जीवों का नियन्त्रण तथा जीवों के द्वारा पर्यावरण का नियन्त्रण।


इस प्रकार किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र में उसको संरचना एवं कार्य का अध्ययन एक साथ किया जाता है। पारिस्थितिक तन्त्र की संरचना (Structure of Ecosystem) एक पारिस्थितिक तन्त्र में निम्नलिखित दो प्रकार के प्रमुख घटक (Component) पाये जाते हैं...

1. अजैविक घटक (Abiotic or Non-Living Component) 

2. जैविक घटक (Biotic or Living Component)


1. अजैविक घटक-अजैविक घटकों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है:-

(अ) अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic Substances) मिट्टी तथा वायु में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के अकार्बनिक पदार्थ जैसे–फास्फोरस, सल्फर, कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन आदि अकार्बनिक पदार्थ (Material cycles) में भाग लेते हैं। अतः यह पदार्थ कभी भी पारिस्थितिक तन्त्र में खत्म नहीं होते हैं बल्कि इनका नियमित चक्र चलता रहता है। एक पारिस्थितिक तन्त्र में एक निश्चित समय पर उपस्थित अकार्बनिक पदार्थों की मात्रा को Standing State अथवा Standing Quality कहते हैं।

(ब) कार्बनिक यौगिक (Organic Compound) कार्बोहाइड्रेट्स, वसा तथा प्रोटीन पारिस्थितिक तन्त्र को ऊर्जा देते हैं। ये पदार्थ जैविक तथा अजैविक घटकों को जोड़ते हैं तथा इनका निर्माण जीवों के द्वारा ही किया जाता है। इन्हें जैव रासायनिक संरचनाएँ भी कहा जा सकता है।

(स) एक निश्चित क्षेत्र की जलवायु पारिस्थितिक तन्त्र का क्षेत्र तथा उसकी जलवायु किस प्रकार की है इसके लिये निम्नलिखित चार प्रकार के कारकों का अध्ययन किया जाता है :

1. प्रकाश (Light), 

2. वायु का तापक्रम (Temperature of air), 

3. वर्षा (Rainfall),

4. वायु की आर्द्रता (Humidity of air) ।


2. जैविक घटक (Biotic Components)- जैविक घटकों के अन्तर्गत पारिस्थितिक तन्त्र के सभी जीवधारियों को सम्मिलित किया जाता है। पोषण के आधार पर जैवीय घटक निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटे जा सकते हैं:

1. स्वपोषी घटक (Autotrophic component)

2. परपोषी घटक (Heterotrophic Component)


1. स्वपोषी घटक (Autotrophic Component) सभी हरे पौधे स्वपोषी घटक कहलाते हैं। पारिस्थितिकी (Ecology) में इन्हें उत्पादक (producers) कहा गया है। ये पौधे प्रकाश की उपस्थिति में भोजन का निर्माण करते हैं तथा O, मुक्त करते हैं।

उत्पादकों (Producers) को कुछ पारिस्थितिकविदों के द्वारा convertors तथा transducers भी कहा गया है क्योंकि हरे पौधे कार्बोहाइड्रेट्स का उत्पादन तो करते हैं लेकिन ऊर्जा का उत्पादन नहीं करते हैं। ये पौधे प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। इस प्रकार इन्हें convertors या transducers कहा जाना उचित है। Producer शब्द का उपयोग बहुत अधिक हो चुका है। इस कारण अभी भी इस शब्द का प्रयोग प्रचलित है।


2. परपोषी घटक (Heterotrophic Component)—वे सभी जीवधारी जो उत्पादकों द्वारा निर्मित भोजन का उपयोग करते हैं परपोषी घटक कहलाते हैं। ये घटक उपभोक्ता (Consumers) भी कहलाते हैं। इन्हें दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है- 

(1) दीर्घ उपभोक्ता (Macro Consumers) — ये बड़े उपभोक्ता होते हैं। इन्हें निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है---

(i) शाकाहारी जन्तु (Herbivores) |

(ii) माँसाहारी जन्तु (Carnivoers)। 

(iii) सर्वभक्षी जन्तु (Omnivores)।

शाकाहारी जन्तु प्राथमिक उपभोक्ता होते हैं जबकि माँसाहारी तथा सर्वभक्षी द्वितीयक या तृतीयक उपभोक्ता होते हैं। उपरोक्त सभी प्रकार के उपभोक्ता Phagotrophs होते हैं।


(2) सूक्ष्म उपभोक्ता (Micro Consumers) — इन्हें प्राय: अपघटनकर्ता (Decomposer's) कहा जाता है। ये मृतोपजीवी होते हैं। इनके अन्तर्गत बैक्टीरिया, एक्टीनोमाइसिटीज तथा कवक आते हैं। यह मृत पदार्थ पर क्रिया कर उन्हें सरल पदार्थों में तोड़ देते हैं जिसके कारण अकार्बनिक पदार्थों की वातावरण से मुक्ति होती है और वे स्वयंपोषियों के लिये पुन: उपलब्ध हो जाते हैं। परजीवी, बैक्टीरिया तथा कवक को भी सूक्ष्म उपभोक्ता के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। ये जीव-परजीवी खाद्य श्रृंखला के अंतिम उपभोक्ता होते हैं।

किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र के जैविक घटकों को एक क्रियात्मक जगत के रूप में माना जा सकता है। पारिस्थितिक तन्त्र का पोषक स्तर उसमें पाये जाने वाले उत्पादक तथा उपभोक्ता के प्रकारों पर निर्भर करता है। प्रत्येक खाद्य स्तर को पोषक स्तर कहते हैं।

प्रत्येक पारिस्थितिक तन्त्र में जैविक संघटक (Biotic Components) की व्यवस्था तथा सम्बन्ध विशिष्ट होते हैं। इस प्रकार पारिस्थितिक तन्त्र में उत्तरोत्तर पोषक स्तर पर पोषक संरचना और कार्य को ग्राफ द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। ये ग्राफ इकोलॉजिकल पिरामिड कहलाते हैं। प्रत्येक इकोलॉजिकल पिरामिड का आधार उत्पादक बनाते हैं तथा इसके शीर्ष उत्तरोत्तर पोषक स्तरों का बना होता है।

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2 Comments


  1. Bahut accha h bro
    Ese hi aap study materials send karte raho

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    1. Thanks Rizwan
      Aur aap other college students ko bhi share and connect kar dijiye.

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