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स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व (NEED AND IMPORTANCE OF FORMAL EDUCATION FOR WOMEN)

स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व (NEED AND IMPORTANCE OF FORMAL EDUCATION FOR WOMEN)


आज से ही नहीं अपितु प्राचीन काल से ही शिक्षा के महत्व को अंगीकृत किया जाता रहा है। नीतिशतककार भर्तृहरि ने तो शिक्षाविहीन व्यक्ति को साक्षात् पशु के समान माना है (साहित्यसंगी कलाविहीनः साक्षात् पशु पुच्छ विषाण हीनः) । स्त्री हो या पुरुष बिना शिक्षा के उसका समग्र विकास नहीं हो पायेगा और न ही वह एक सम्पूर्ण चरित्र बन सकेगा। अतः प्रत्येक व्यक्ति की शिक्षा अत्यावश्यक है। वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है और एकाकी परिवारों का प्रचलन जोरों से हो रहा है। ऐसे में परिवार की शिक्षा में भूमिका कम हुई है और औपचारिक शिक्षा के प्रमुख साधन विद्यालयों की ओर झुकाव बढ़ा है। औपचारिक शिक्षा इस प्रकार वर्तमान में एक मूलभूत आवश्यकता के रूप में व्याप्त हो गयी है।

भारत में प्रजातान्त्रिक प्रणाली है और प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति के अस्तित्व का महत्व है। यहाँ किसी भी आधार पर भेदभाव निषिद्ध है और सबको अपने अधिकारों और स्वतन्त्रताओं के उपयोग की पूरी छूट है तथा इसकी प्राप्ति कराने के लिए हमारा संविधान कृत संकल्पित है। संविधान की इन्हीं संकल्पनाओं की पूर्ति हेतु तथा असमानता पक्षपात और भेदभाव की खाई को पाटने के लिए 6 से 14 वर्ष बालकों हेतु अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था कर दी गयी है। स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा में सुनिश्चितता हेतु बालिका विद्यालयीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रयास केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा किये जा रहे हैं। 


स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्व निम्न प्रकार है

1. पारिवारिक उत्तरदायित्वों हेतु

2. सामाजिक दृष्टि से

3. आर्थिक दृष्टि से 

4. राजनैतिक दृष्टि से

5. नेतृत्व क्षमता के विकास हेतु

6. प्रजातान्त्रिक मूल्यों की सफलता हेतु 

7. व्यावसायिक कुशलता हेतु

8. खोये हुए आत्मविश्वास की प्राप्ति तथा हीन मानसिकता से बाहर निकलने हेतु 

9. राष्ट्रीय उन्नति तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं अवबोध

10. उत्तम स्वास्थ्य तथा शिक्षा हेतु

11. व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास हेतु


1. पारिवारिक उत्तरदायित्वों हेतु स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि शिक्षित स्त्री अपने पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन भली प्रकार से कर सकेगी। कहा भी गया है कि स्त्रियाँ यदि शिक्षित होंगी तो सम्पूर्ण परिवार शिक्षित होता है.. परन्तु यदि कोई पुरुष शिक्षित होता है तो वह स्वयं ही शिक्षित होता है। यदि स्त्री औपचारिक शिक्षा ग्रहण करती है तो वह निम्नांकित पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन सफलतापूर्वक करेगी (1) बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा इत्यादि पर ध्यान।

(ii) पुत्र तथा पुत्री में भेदभाव न होना।

(ii) संस्कार तथा संस्कृति का हस्तान्तरण एवं विकास 

(iv) स्वस्थ मानसिक प्रवृत्ति का जन्म।

(v) बच्चों के पालन-पोषण की भली प्रकार समझ।

(vi) सुयोग्य भावी संततियों का निर्माण।


2. सामाजिक दृष्टि से हमारे समाज में स्त्रियों से सम्बन्धित अनेको कुरीतियाँ प्राचीन काल से चली आ रही हैं जो निम्न प्रकार हैं

(1) जौहर प्रथा,

(ii) दहेज प्रथा,

(iii) सती प्रथा.

(iv) बाल-विवाह,

(v) देवदासी प्रथा.

(vi) पर्दा प्रथा. 

(vii) पुरुष प्रधानता और श्रेष्ठता, 

(viii) डायन-बिसाही.

(ix) कन्या भ्रूणहत्या,

(x) कन्या शिशु हत्या आदि। 

बन्द समाज में स्त्रियों को प्रत्येक क्षण उपेक्षा का भाव सहन करना पड़ता है, परन्तु शिक्षा के बिना सामाजिक कुरीतियों का कुचक्र चलता रहता है और इस कुचक्र को तोड़ने हेतु शिक्षा सबसे प्रभावी अभिकरण है। शिक्षित स्त्रियाँ अपने सामाजिक अधिकारों और स्थिति के प्रति सजग रहेंगी और इनकी प्राप्ति के लिए आवाज उठायेंगी। सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति में स्त्रियाँ औपचारिक शिक्षा की ओर कदम बढ़ाकर ही योगदान प्रदान कर सकेंगी, जिससे सामाजिक गतिशीलता और उन्नति का वातावरण सृजित होता है।


3. आर्थिक दृष्टि से—आर्थिक क्रियाकलापों में कुशलता के लिए स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा अत्यावश्यक है। इसके साथ ही साथ भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज रहा है, जहाँ आर्थिक विषय के केन्द्र में सदैव पुरुष ही रहे हैं। औपचारिक शिक्षा की प्राप्ति के द्वारा स्त्रियाँ अपने आर्थिक अधिकारों से अवगत होंगी, जिससे उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी। इसके परिणामस्वरूप वे पुरुषों के मनमाने व्यवहार को सहन करने के लिए बाध्य नहीं होंगी और उसके विरुद्ध आवाज उठा सकेंगी। इस प्रकार स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्व आर्थिक हितों और गतिशीलता हेतु अत्यधिक है।


4. राजनैतिक दृष्टि से प्रजातान्त्रिक वातावरण में जब तक महिलाये सुशिक्षित नहीं होगी तब तक वे अपने अधिकारों का उपयोग सावधानीपूर्वक नहीं कर पायेगी, जिससे उनकी समानता और स्वतन्त्रता की बात बेमानी ही सिद्ध हो जायेगी। महिलाओं को जो राजनैतिक अधिकार प्राप्त हैं, बिना शिक्षा के वे उसका उपयोग अपने तथा मानवता के हितों के संरक्षण हेतु नहीं कर पायेगी। वर्तमान राजनीति में बाहुबलियों, दल-बदलुओं का दबदबा होने का एक कारण स्त्री अशिक्षा है क्योंकि स्त्रियाँ अपने मताधिकार का प्रयोग अपनी स्वेच्छा और बुद्धि से करने में समर्थ नहीं है। महिलाये राजनैतिक पदों पर अपनी भागीदारी और बराबरी का दर्जा शिक्षा के बिना प्राप्त नहीं कर सकती हैं। यदि ऐसा हो भी जाये तो वे किसी के हाथों की कठपुतली स्वरूप ही कार्य सम्पन्न करेंगी। इस प्रकार राजनैतिक दृष्टि से स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा महत्वपूर्ण है।


5. नेतृत्व क्षमता के विकास हेतु पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों को नेतृत्व हेतु अनुपयुक्त माना जाता है। इस कार्य में महिलाओं की अपेक्षा पुरुष ही कार्य करते हैं। स्त्रियों से सम्बन्धित विषयो– पढ़ाई, विवाह, नौकरी इत्यादि सभी घरेलू और बाह्य विषयों पर पुरुष की यह धारणा-सी बन गयी है कि वही श्रेष्ठ है तो नेतृत्व की बागडोर प्रत्येक स्थल और भूमिका में उसी की होनी चाहिए। इस धारणा के परिणामस्वरूप स्त्रियों में हीनता का भाव आ गया है और उन्होंने स्वेच्छा से पुरुषों के ऊपर नेतृत्व करने का दायित्व सौंप दिया है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी स्थिति में हास हो रहा है। औपचारिक शिक्षा के अन्तर्गत तमाम गतिविधियों के आयोजन द्वारा स्त्रियों को नेतृत्व क्षमता के विकास हेतु तैयार किया जाता है तथा ऐसी स्त्रियों के चरित्र व्यक्तित्व तथा कार्यों से अवगत कराया जाता है जिन्होंने विविध क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान किया है। इस प्रकार नेतृत्व क्षमता के विकास हेतु स्त्री शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्व अत्यधिक है।


6. प्रजातान्त्रिक मूल्यों की सफलता हेतु प्रजातान्त्रिक मूल्यों की सफलता तभी है जब प्रजातान्त्रिक मूल्यों—समानता, सहयोग, स्वतन्त्रता तथा न्याय आदि के लिए उसके सभी नागरिक प्रशिक्षित हो और औपचारिक शिक्षा के उद्देश्यों के अन्तर्गत इसे सम्मिलित किया गया है जिसे महिलायें अपने महत्व और प्रजातान्त्रिक मूल्यों के निर्वहन में दक्ष होती है। प्रजातान्त्रिक मूल्यों की प्राप्ति सुशिक्षित महिलायें जहाँ प्राप्त करना अपना अधिकार समझती है, तो दूसरी ओर उन्हें उनके दायित्वों से भी परिचित कराया जाता है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था के केन्द्र में प्रत्येक व्यक्ति है, बिना किसी भेदभाव के, अतः यहाँ स्त्रियों का भी महत्व उतना ही है जितना पुरुषों का। इस प्रकार प्रजातान्त्रिक मूल्यों की स्थापना और सफलता में स्त्रियों का स्थान अति उच्च है।


7. व्यावसायिक कुशलता हेतु स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा का प्रत्यक्ष सम्बन्ध उनकी व्यावसायिक कुशलता से भी है। स्त्रियाँ सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या की आधी है। लगभग और शिक्षा के अभाव में उनकी व्यावसायिक क्षमताओं और शक्तियों का उपयोग न होने से प्रति वर्ष करोड़ो रुपये की क्षति हो रही है तथा मानकीय संसाधनों की दृष्टि से देखा जाये तो स्त्रियों की क्षमताओं का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। वैश्वीकरण तथा उदारीकरण के दौर में कोई भी देश तभी उन्नति कर पायेगा जब वह उपलब्ध मानवीय संसाधनों का समुचित और सर्वोत्तम उपयोग करता हो और यह व्यावसायिक शिक्षा के बिना पूर्ण नहीं हो सकता। आँकड़ों के अनुसार जिन देशों में स्त्रियों की व्यावसायिक क्षमताओं का उपयोग भली प्रकार किया जा रहा है, वे अग्रणी हो रहे है। व्यावसायिक कुशलता के द्वारा स्त्रियाँ आर्थिक स्वावलम्बन की ओर अग्रसर होकर अपने देश की पहचान विश्वफलक पर स्थापित करने में भी सहयोग करेंगी। अतः व्यावसायिक कुशलता हेतु स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा अत्यावश्यक तथा महत्वपूर्ण है।


8. खोये हुए आत्मविश्वास की प्राप्ति तथा हीन मानसिकता से बाहर निकलने हेतु-वर्षों से पर्दे की ओट में रहने के कारण भारतीय महिलाओं ने अपनी सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक इत्यादि स्थिति से ही हाथ ही नहीं धोया है अपितु जो सबसे बड़ी चीज खोई है, वह है आत्मविश्वास। स्त्रियों में यह विचार जड़ तक गहरा गया है कि बिना पुरुषों के वह कुछ नहीं कर सकत, वे पुरुषों की अपेक्षा हीन है, परन्तु औपचारिक शिक्षा के द्वारा स्त्रियों को साथ-साथ कार्य करने के अवसर और अपनी प्रतिभा दिखाने के भी अवसर प्राप्त होते हैं, जिससे उनका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटता है और वे इस मनोविज्ञान से धीरे-धीरे बाहर भी निकलने लगती हैं कि पुरुष श्रेष्ठ है। पुरुषों की श्रेष्ठता की भावना के कारण स्त्रियाँ पुत्र की प्राप्ति की चाह रखती है जिस पर भी रोक लगती है। इस प्रकार स्त्रियों के खोये हुए आत्मविश्वास की प्राप्ति तथा हीन भावना से बाहर निकालने के लिए उनकी औपचारिक शिक्षा अत्यावश्यक है।


9. राष्ट्रीय उन्नति तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं अवबोध यह बात चिन्तन करने योग्य हैं कि यदि हम उपलब्ध मानवीय श्रम का कुछ ही भाग प्रयुक्त करते हैं तो स्थिति इतनी आशाजनक है। राष्ट्रीय उन्नति की यदि स्त्रियों को शिक्षण प्रदान की जाये तो उनकी क्षमताओं से राष्ट्रीय उन्नति की नई गाथा लिखी जा सकती है। स्त्रियों के स्वाभाविक रूप हैं-मातृत्व, दया, प्रेम, सहयोग, त्याग आदि, जिनकी आवश्यकता वर्तमान परिदृश्य में अत्यधिक है, क्योंकि वर्तमान विश्व परमाणु बमों की नोक पर स्थित है। ऐसी परिस्थिति में स्त्रियों के इन स्त्रियोचित गुणों का उपयोग औपचारिक शिक्षा द्वारा करके उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और अवबोध (Understanding) की स्थापना की अग्रदूत बनाया जाना चाहिए। राष्ट्रीय उन्नति तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा अवबोध हेतु स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्व अत्यधिक है।


10. उत्तम स्वास्थ्य तथा शिक्षा हेतु-हमारे देश के समक्ष व्यापक चुनौती स्वास्थ्य तथा शिक्षा है, क्योंकि स्त्रियाँ जिनके ऊपर बच्चों के पालन-पोषण, देख-रेख, परिवार के सदस्यों के खान-पान, साफ-सफाई तथा गृह-प्रबन्धन का उत्तरदायित्व होता है, वे अशिक्षित है जिससे पारिवारिक स्वास्थ्य तथा शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं होती है। अशिक्षित स्त्री सन्तुलित आहार तथा सुलभ पौष्टिक आहार से परिचित न होने के कारण उसका लाभ नहीं उठा पाती है। परिणामस्वरूप बेरी-बेरी रोग, पोलियो, रक्तहीनता, मोतियाबिन्द तथा अन्य कुपोषण जनित बीमारियाँ फैलती हैं। आज भी भारत में मातृ तथा शिशु मृत्यु दर अत्यधिक है जिसमें से 677 प्रति लाख पर मातृ मृत्यु दर है। शिक्षा के अभाव में स्त्रियाँ जादू-टोने तथा विभिन्न प्रकार के टोटकों में विश्वास करती हैं। परिणामतः स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या गम्भीर रूप धारण कर लेती हैं। स्त्रियाँ गर्भ निरोधक, प्रजनन, माहवारी तथा सैनिट्री नैपकीन्स इत्यादि के प्रयोग पर न तो स्वयं बात करती हैं और न ही बालिकाओं को इससे अवगत कराती है। इस प्रकार औपचारिक शिक्षा के द्वारा ही स्त्रियों को उत्तम स्वास्थ्य और शिक्षा हेतु जागरूक किया जा सकता है।


11. व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास हेतु स्वामी विवेकानन्द जी ने शिक्षा को परिभाषित करते हुए इसे अन्तर्निहित शक्तियों का विकास कहा है। औपचारिक शिक्षा सोद्देश्य तथा नियन्त्रित होती है, जिसके द्वारा शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालकों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है। वही शिक्षा वास्तविक अर्थों में शिक्षा है जो बालकों का सर्वांगीण विकास करे। स्त्री शिक्षा के द्वारा स्त्रियों के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं जैसे-शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक आदि का समग्र विकास होता है जिससे परिवार, समाज, राष्ट्र तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास हेतु स्त्रियों की औपचारिक शिक्षा अत्यावश्यक है।

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