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संवेग का अर्थ, परिभाषा एवं उसकी विशेषताएं Meaning of Emotion, Definition and its Importance

संवेग का अर्थ, परिभाषा एवं उसकी विशेषताएं Meaning of Emotion, Definition and its Importance


संवेग:-
प्राणी काa वह आंतरिक अनुभव है, जिसमें उसकी मानसिकa स्थिति को एक उथल- पुथल प्रवृत्ति के रूप में व्यक्त होती है। हम संवेग कोa प्रायः मूल प्रवृत्ति ही समझ लेते हैं, aकिंतु ऐसा मानना उचित नहीं है । इसमें कोईaसंदेह नहीं कि संवेग भी मूल प्रवर्ति है, aकिंतु दोनों में भिन्नता है। जहां मूल-प्रवृत्ति क्रियात्मक है, aवही संवेग भावात्मक प्रवर्ति है ।

    संवेग का अंग्रेजी रूपांतरणa 'EMOTION' है । जो लैटिन शब्द'EMOVERE' से बना हैa, जिसका अर्थ उत्तेजित करनाaहोता है। इस शाब्दिक अर्थ कोaध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि संवेगaव्यक्ति की उत्तेजित अवस्था का दूसरा नाम है। वास्तवaमें संवेग एक जटिल अवस्था है। जिसमें कुछaशारीरिक प्रतिक्रियाएँ, जैसे -- हृदय गतिaमें परिवर्तन, रक्तचापaमें परिवर्तन आदि होती हैं। इनके अलावाaशरीर के बाहरी अंगों,  जैसे-- हाथ,aपैर , आंख, चेहरा आदि में भीaकुछ परिवर्तन हो जाते हैं। जिसे देखकर यहaसमझा जा सकता है कि बालक संवेगaकी स्थिति में है । संवेग कि शारीरिक प्रतिक्रियाएं, अभिव्यंजकaव्यवहार के अलावा एक आत्मनिष्ठ भावaभी होता है। सामान्यतः किसी भी संवेग मेंaसुखद या दुःखद के भाव की अनुभूति पाई जाती है। जैसे-- भय मेंaदुखद भाव की अनुभूति तथा खुशी में सुखदaभाव की अनुभूति होती है। यही बात अन्यaसंवेगों की स्थिति मेंaभी पाई जाती है।

Definitions of Emotion:-

Crow and Crow:- Anaemotion, then, is an effective experienceathat accompanies generalized, inner, adjustmentaand mental and physiologicalastirred up states in theaindividual and that shows itself in his overabehavior. thus defined, an emotionais a dynamic internal adjustmentathat operates for the satisfaction,aprotection and welfare toathe individual.

Geldard:- Emotion isainciters to action.

English and English:- Emotion isaa complex feelingastate accomplained byacharacteristics or glandular activities.

Baron, Burn and Kantowitz:- By emotion weamean a subjective feelingastate involving physiological arousal accomplained byacharacteristic behavior.

Wood Worth:- Emotion is a a movedaor stirred up state ofaan organism it is a stirred upastate of feeling that is the way itaappears that to the individual himself. It is a disturbedamuscular and glandular activity that is the wayait appears to an externalaobserver. 

Charles G Morris:- Emotion is a complexaeffective experience that involvesadiffuse psychological changes and can beaexpressed overtly in characterabehavior patterns. 

Ross:- Emotional states are those modesaof consciousness in which the feelingaelement is predominant. 

Valentine:- When feelingsabecome intense weahave emotions. 

Jershield:- The term emotionadenotes a state of being moved stirred upaor aroused in some way. 

P.T.Young:- Emotion is anaacute disturbance of the individualaas a whole, psychological isaorigin, involving behavior,aconscious, experience andavisual functioning. 

*संवेगों की विशेषताएं*---- :   संवेगों की मानवaजीवन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है. संवेगों की प्रकृतिaभावनात्मक होती है जो व्यक्ति को क्षणिकaउत्तेजना प्रदान करते हैं। संवेगो को व्यक्ति केaमुख-मुद्रा, वाणी तथा अन्य व्यवहार के अवलोकन सेaपहचाना जा सकता है। 

*संवेगों की निम्नलिखितaविशेषताएं होती है---*

1-: संवेगों में व्यापकताaपाई जाती है। संवेग पशु-पक्षी, बालकaवृद्ध,  सभी में पाए जाते हैं।

2-: मनुष्य की सभी दशाओंaएवं अवस्थाओं मेंaसंवेग पाए जाते हैं।

3-: संवेगात्मक अनुभूतियों के साथ-साथ कोईaना कोई मूल प्रवृत्ति अथवा मूलभूत आवश्यकताaजुड़ी रहती है।

4-: सामान्य रूप से संवेगaकी उत्पत्ति प्रत्यक्षीकरण केaमाध्यम से होती है ।

5-: किसी भी संवेग कोaजागृत करने के लिए भावनाओं काaहोना आवश्यक है।

6-:प्रत्येक संवेगात्मकaअनुभूति व्यक्ति में कई प्रकार के शारीरिकaऔर शरीर संबंधी परिवर्तनोंaको जन्म देती है।

7-: संवेग में अस्थिरताaपाई जाती है।

8-: संवेग मनोशारीरिकaहोता है।

9-:संवेग की दशा में बुद्धिaकाम नहीं करती है।

10-: संवेग पर परिस्थितिaऔर ग्रंथियों का प्रभाव पड़ता है।

11-: संवेग का प्रकाशन हरaएक व्यक्ति व्यक्तिगतaढंग से करता है।

12-: संवेग का परिणामaकोई क्रिया अवश्य होती है।

13-: प्रशिक्षण, ज्ञान ,अनुभवaकी वृद्धि आदि के परिणाम स्वरुपaमनुष्य में विशेषकर संवेगों काaस्थानांतरण होता है।


*अध्यापकों के लिए संवेगात्मक विकास के निहितार्थ--*

बालक के संवेगों केaविकास पर ही बालक का शारीरिक, मानसिक वaचारित्रिक विकास निर्भर होता है। शिक्षा का कार्य है कि सभ्य,aसुशिक्षित,aसंस्कारित,अनुशासित और बहुआयामीaव्यक्तित्व वाले नागरिकों काaविकास करें। उचित रूप से संवेगोंaका प्रदर्शन व नियंत्रण करने में सफल बालकaस्वयं और समाज दोनों के लिए हितकारीaहोते हैं। संवेगों के प्रशिक्षणaमें अध्यापकों की प्रमुख भूमिकाaहोती है। बालक का व्यवहार उसकेaव्यक्तित्व का निर्धारण करता है और व्यवहारaऔर व्यवहार संवेगों कीaउपस्थिति से प्रभावित होता है। संवेगों का उचितaविकास नहीं होता है तो बालक का संपूर्ण व्यक्तित्वaविघटित हो सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि अध्यापक विद्यार्थियों के संवेगात्मकaविकास में सहायक बने। अतः अध्यापक को बालकaके संवेगात्मक विकास और संवेग प्रशिक्षण विधियों से अवगतaहोना आवश्यक है। तभी वह अपने दायित्वोंaको पूर्ण करने में सफल होaसकता है। _अध्यापकों के लिए संवेगात्मक विकास केaनिहितार्थों को निम्न बिंदुओं में प्रस्तुतaकिया जा सकता है---:_

1-: अध्यापक को शिक्षण की ऐसीaव्यवस्था बनानी चाहिए जिसमें विद्यार्थी खुलकरaअपने संवेगों की अभिव्यक्ति कर सकें और उनके मनaमें शैक्षणिक गतिविधियों के प्रति व्याप्तaभय वा चिंताएँ दूर हो सकें।

2-: विद्यार्थियों को अपनेaसंवेगों की अभिव्यक्ति के प्रोत्साहित करनाaअध्यापकों का कर्तव्य है और इसके लिए अध्यापकों कोaऐसे अवसर सृजित करना चाहिए जिससे विद्यार्थियोंaकी झिझक समाप्त हो सके।

3-: अध्यापकों को ध्यान रखना चाहिए किaबालक के संवेगों के विकास किए बिनाaउसका बौद्धिक विकास करना संभव नहीं है।aअध्यापक को अपने अंदर यह क्षमता पैदा करनीaचाहिए कि वह कक्षा के बाहर विषम परिस्थितियों में भी अपना भावनात्मकaसंतुलन बनाए रखें तथा तथा सकारात्मकaदृष्टिकोण अपनाएं. जिससे वह बालकों के साथ समुचितaव्यवहार कर सकेगा।

4-: अध्यापकों को चाहिए कि विद्यार्थियोंaके माता-पिता से निरंतर संपर्क बनाएँ रखें। विद्यार्थियों के संवेगaप्रशिक्षण में माता पिता का सहयोगaप्राप्त करने के साथ-साथ विद्यार्थियों कीaशारीरिक कमजोरियों , न्यूनताओ, बीमारियों आदिaसे अवगत हो,  जिससे विद्यार्थियों के लिएaउचित निर्देशन एवं परामर्श दे सके।

5-: अध्यापकों को माता-पिताaको स्पष्ट रूप से अवगत कराना चाहिए किaबालकों के संवेगात्मक विकास पर पारिवारिकaवातावरण का बहुत अधिक प्रभावaपड़ता है। बालकों को अनुकूल वातावरणaप्रदान करने के लिए माता-पिता कोaप्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

6-: अध्यापक की संबोधन क्षमता,aवैयक्तिक आकृति, संयम, उत्साह, मानसिकताaनिष्पक्षता, शुभचिंतन, सहानुभूति बालक की संवेगों कोaप्रशिक्षित करने में सहायक होती है।

7-: पाठ्य सहगामी क्रियाओं का बालकaके संवेगात्मक विकास में बड़ाaयोगदान होता है । इन कार्यक्रमों के द्वारा बालकों को आत्माभिव्यक्ति,aस्वयं को तथा दूसरों को जानने कीaसमझदारी ,स्वयं की रुचियों कोaव्यापक बनाने, स्वयं के कार्यों को नियंत्रितaकरने की अवसर प्राप्त होते है। अध्यापकों को पाठ्यaसहगामी क्रियाओं की आयोजन में विशेष रुचिaलेनी चाहिए ।

8-:गृह कार्य प्रदान करते समय अध्यापकों कोaबालकों की आयु और व्यक्तिगत विभिन्नताओंaको ध्यान में रखना चाहिए

9-: अध्यापक कोaशिक्षण विधियों का चयन और शिक्षण कार्यaमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बालक कीaसंवेगात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।यह ध्यान रखना चाहिए कि बालक की संवेगात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।

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