Recents in Beach

बाल्यावस्था क्या है? बाल्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। Childhood and its Properties B.Ed Hindi Notes

बाल्यावस्था क्या है? बाल्यावस्था की विशेषताओंहैका वर्णन कीजिए।

बाल्यावस्था वास्तव मेंहैमानव जीवन का वह स्वर्णिम समय है जिसमें उसका सर्वांगीण विकास होता है। फ्रायड यद्यपिहैयह मानते हैं कि बालक का विकास पाँच वर्षहैकी आयु तक हो जाता है। लेकिन बाल्यावस्था में विकास कीहैयह सम्पूर्णता गति प्राप्त करती है और एक ओरहैपरिपक्व व्यक्ति के निर्माण कीहैओर अग्रसर होती है। 

शैशवावस्था के बाद बाल्यावस्था काहैआरम्भ होता है। यह अवस्था, बालक केहैव्यक्तित्व के निर्माण की होती है।  बालक  में इस अवस्था मेंहैविभिन्न आदतों, व्यवहार, रुचि एवं इच्छाओं केहैप्रतिरूपों का निर्माण होता है। 

ब्लेयर, जोन्स एवंहैसिम्पसन के अनुसार—“शैक्षिक दृष्टिकोण सेहैजीवन चक्र में बाल्यावस्था से अधिक कोई महत्त्वपूर्णहैअवस्था नहीं है। जो शिक्षक इस अवस्था के बालकों कोहैशिक्षा देते हैं, उन्हें बालकों का, उनकी आधारभूतहैआवश्यकताओं का, उनकी समस्याओं एवं उनकी परिस्थितियों की पूर्णहैजानकारी होनी चाहिए जो उनके व्यवहार कोहैरूपान्तरित और परिवर्तित करती है। “

कोल व ब्रूस ने बाल्यावस्था कोहैजीवन का ‘अनोखा काल’ बताते हुए लिखा है— “वास्तव में माता पिता केहैलिए बाल-विकास की इस अवस्थाहैको समझना कठिन है।” 

कुप्पूस्वामी के अनुसार इस अवस्थाहैमें बालक में अनेक अनोखे परिवर्तन होते हैं, उदाहरणार्थ, 6 वर्ष कीहैआयु में अनोखे परिवर्तन होते हैं, उदाहरणार्थ, 6 वर्ष की आयुहैमें बालक का स्वभाव बहुत उग्र होता है और वह लगभग सबहैबातों का उत्तर ‘न’ या ‘नहीं’ मेंहैदेता है। 7 वर्ष की आयु में वह उदासीन होता है और अकेला रहना पसन्दहैकरता है। 8 वर्ष की आयु में उसमें अन्य बालकों सेहैसामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की भावना बहुत प्रबल होती हैं। 9 सेहै12 वर्ष तक की आयु में विद्यालय में उसके लिए कोईहैआकर्षण नहीं रह जाता है। वह कोईहैनियमित कार्य न करके, कोई महान् और रोमांचकारी कार्यहैकरना चाहता है। 


बाल्यावस्था की मुख्य विशेषताएँ

यद्यपि बाल्यावस्था को 6-12 वर्षायुहैतक माना जाता है। हरलॉक ने इसे 6 वर्ष से लेकर 12 वर्ष तक के बीच काहैसमय माना है। इस अवस्था में ये विशेषतायें विकसित होती हैं। 

1. शारीरिक व मानसिकहैस्थिरता – 6 या 7 वर्ष की आयु के बाद बालक के शारीरिक औरहैमानसिक विकास में स्थिरता आ जाती हैं। वह स्थिरता उसकी शारीरिक व मानसिकहैशक्तियों को दृढ़ता प्रदान करती है। फलस्वरूप, उसका मस्तिष्क परिपक्व-सा औरहैवह स्वयं वयस्क-सा जान पड़ता है। इसलिए, रॉस (Ross) ने बाल्यावस्था को ‘मिथ्या-परिपक्वता’ काहैकाल बताते हुए लिखा है- “शारीरिक और मानसिक स्थिरता बाल्यावस्था की सबसेहैमहत्त्वपूर्ण विशेषता है।”

बाल्यावस्था के विकास का महत्त्व अत्यधिक है। इस अवस्था मेंहैविकास का अध्ययन अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों को प्रकट करता है। कैरल के अनुसार- “बालक के शारीरिकहैविकास और उसके सामान्य व्यवहार का सह-सम्बन्ध इतना महत्त्वपूर्ण होता है कि यदिहैहम समझना चाहें कि भिन्न-भिन्न बालकों में क्या समानतायें है, क्या भिन्नतायें हैं, आयु-वृद्धि के साथ व्यक्ति मेंहैक्या-क्या परिवर्तन होते हैं तो हमें बालक के शारीरिक विकास का अध्ययनहैकरना होगा।”

2. मानसिक योग्यताओं में वृद्धि – बाल्यावस्था में बालकहैकी मानसिक योग्यताओं में निरन्तर वृद्धि होती है। उसकी संवेदना और प्रत्यक्षीकरण कीहैशक्तियों में वृद्धि होती है। वह विभिन्न बातों के बारेहैमें तर्क और विचार लगने लगता है। वह साधारणहैबातों पर अधिक देर तक अपने ध्यान को केन्द्रित करहैसकता है। उसमें अपने पूर्व अनुभवों को स्मरणहैरखने की योग्यता उत्पन्न हो जाती हैं।

3. जिज्ञासा की प्रबलता- बालक की जिज्ञासाहैविशेष रूप से प्रबल होती है। वह जिन वस्तुओं के सम्पर्क में आता है, उसके बारे मेंहैप्रश्न पूछ कर हर तरह की जानकारी प्राप्त करना चाहता है। उसके ये प्रश्न शैशवावस्था के साधारण प्रश्नोंहैसे भिन्न होते हैं। अब वह शिशु के समान यह नहीं पूछता क्या है?’ इसके विपरीत वहहैपूछता है—’यह ऐसे क्यों है?’ ‘यह ऐसे कैसे हुआ है?’

4. वास्तविक जगत् केहैसम्बन्ध – इस अवस्था में बालक, शैशवावस्था केहैकाल्पनिक जगत् का परित्याग करके वास्तविक जगत् में प्रवेश करता है। वह उसकी प्रत्येक वस्तु सेहैआकर्षित होकर उसका ज्ञान प्राप्त करना चाहता है। स्ट्रैंग के शब्दों में- “बालक अपने कोहैअति विशाल संसार में पाता है और उसके बारे में जल्दी से जल्दीहैजानकारी प्राप्त करना चाहता है।”

5. रचनात्मक कार्योंहैमें आनन्द- बालक को रचनात्मक कार्यों सेहैविशेष आनन्द आता है। वह साधारणतः घर से बाहर किसी प्रकार काहैकार्य करना चाहता है, जैसे-बगीचे में काम करना या औजारों से लकड़ी की वस्तुएँ बनाना। उसके विपरीत, बालिका घरहैमें ही न कोई-न-कोई कार्य करना चाहती है, जैसे सींना, पिरोनाहैया कढ़ाई करना।

6. सामाजिक गुणोंहैका विकास- बालक, विद्यालय केहैछात्रों और अपने समूह के सदस्यों के साथ पर्याप्त समय व्यतीतहैकरता है। अतः उसमें अनेक सामाजिक गुणों का विकासहैहोता है, जैसे सहयोग, सद्भावना, सहनशीलता, आज्ञाकारिता आदि।

7. नैतिक गुणों काहैविकास- इस अवस्था के आरम्भ मेंहैही बालक में नैतिक गुणों का विकास होने लगता है। स्ट्रेंग के मतानुसार “छः, सातहैऔरहैआठ वर्ष के बालकों में अच्छे-बुरे के ज्ञान काहैएवं न्यायपूर्ण व्यवहार, ईमानदारी औरहैसामाजिक मूल्यों की भावना का विकास होने लगता है। “

8. बहिर्मुखी व्यक्तिहैका विकास- शैशवावस्था में बालक काहैव्यक्तित्व अन्तर्मुखी होता है, क्योंकि वह एकान्तप्रिय औरहैकेवल अपने में रुचि लेने वाला होता है। इसके विपरीत, बाल्यावस्था मेंहैउसका व्यक्तित्व बहिर्मुखी और केवल अपने में रुचिहैलेने वाला होता है। इसके विपरीत, बाल्यावस्था में उसकाहैव्यक्तित्व बहिर्मुखी हो जाता है, क्योंकि बाह्य जगत मेंहैउसकी रुचि उत्पन्न हो जाती है। अतः वह अन्य व्यक्तियों, वस्तुओं और कार्यों का अधिकहैसे अधिक परिचय प्राप्त करना चाहता है।

9. संवेगों काहैदमन वहैप्रदर्शन – बालक अपने संवेगों पर अधिकार रखनाहैएवं अच्छी और बुरी ‘भावनाओं में अन्तर करनाहैजान जाता है। वह उन भावनाओं काहैदमन करता है, जिनको उसके माता-पिता और बड़े लोगहैपसन्द नहीं करते हैं, जैसे- काम-सम्बन्धी भावनायें ।

10. संग्रह करने की प्रवृत्ति- बाल्यावस्था मेंहैबालकों और बालिकाओं में संग्रह करनेहैकी प्रवृत्ति बहुत ज्यादा पाई जाती है। बालक विशेषहैरूप से काँच की गोलियों, टिकटों, मशीनों के भागों और पत्थर के टुकड़ों का संचयहैकरते हैं। बालिकाओं में चित्रों, खिलौनों, गुड़ियोंहैऔर कपड़ों के टुकड़ों का संग्रह करने कीहैप्रवृत्ति पाई जाती हैं।

11. निरुद्देश्य भ्रमण कीहैप्रवृत्ति- बालक में बिना किसीहैउद्देश्य के इधर-उधर घूमने की प्रवृत्ति बहुत अधिक होती है। मनोवैज्ञानिक बर्ट नेहैअपने अध्ययनों के आधार पर बताया है कि लगभगहै9 वर्ष के बालकों में आवार घूमने, बिना छुट्टी लिएहैविद्यालय से भागने और आलस्यपूर्ण जीवनहैव्यतीत करने की आदतें सामान्य रूप सेहैपाई जाती है।

12. काम-प्रवृत्ति की न्यूनता-बालक मेंहैकाम-प्रवृत्ति की न्यूनता होती है। वह अपना अधिकांशहैसमय मिलने-जुलने, खेलने-कूदनेहैऔर पढ़ने-लिखने में व्यतीत करता है। अतः वह बहुत हीहैकम अवसरों पर अपनी काम प्रवृत्ति काहैप्रदर्शन कर पाता है।

13. सामूहिक प्रवृत्ति कीहैप्रबलता-बालक में सामूहिक प्रवृत्ति बहुतहैप्रबल होती है। वह अपना अधिक-से-अधिक समय दूसरे बालकों केहैसाथ व्यतीत करने का प्रयास करता है। रॉस केहैअनुसार “बालक प्रायः अनिवार्य रूप सेहैकिसी-न-किसी समूह का सदस्यहैहो जाता है, जो अच्छे खेल खेलने औरहैउसे ऐसे कार्य करने के लिए नियमित रूप सेहैएकत्र होता है, जिनके बारे में बड़ी आयु के लोगों को कुछ भी नहींहैबताया जाता है।” 

14. सामूहिक खेलोंहैमें रुचि – बालक को सामूहिकहैखेलों में अत्यधिक रुचि होती है। वह 6 या 7 वर्ष कीहैआयु में छोटे समूहों में और बहुत काफी समय तकहैखेलता है। खेल के समय बालिकाओं क ‘अपेक्षा बालकों मेंहैझगड़े अधिक होते हैं। 11 या 12 वर्ष की आयु में बालकहैदलीय खेलों में भाग लन लगता है। स्ट्रेंग का विचार है— “ऐसा शायद हीहैकोई खेल हो, जिसे दस वर्ष के बालक न खेलते हों।” –

15. रुचियों मेंहैपरिवर्तन – बालक की रुचियों में निरन्तर परिवर्तनहैहोता रहता है। वे स्थायी रूप धारण न करके वातावरण में परिवर्तनहैके साथ परिवर्तित होती रहती हैं। कोल एवं बूस ने लिखा है- “6 -से 12 वर्ष कीहैअवधि की एक अपूर्व विशेषता है— मानसिक रुचियों मेंहैस्पष्ट परिवर्तन।”

Post a Comment

0 Comments

close