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विकास के सिद्धांत Principle of development (CDP)

विकास के सिद्धांत Principle of development (CDP)

मनुष्य के विकास की प्रक्रिया गर्भावस्था से ही आरंभ हो जाती है | गर्भावस्था से आरंभ हुआ विकास जीवन पर्यंत निरंतर चलता रहता है | मनुष्य के अंदर बहुत से परिवर्तन अवस्था परिवर्तन के साथ होते रहते हैं | यह परिवर्तन कुछ निश्चित सिद्धांतों के अनुरूप होते हैं | व्यक्ति के विकास के अनेक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है | मुख्य सिद्धांतों का संक्षिप्त_उल्लेख यहां किया जा रहा है:-


निरंतरता का सिद्धांत (principle of continuity):-
मानव विकास एक सतत प्रक्रिया है जो जन्म से मृत्यु तक निरंतर चलती रहती है तथा उनमें कोई भी विकास आकस्मिक ढंग से नहीं होता, धीरे-धीरे होता है |Skinner के अनुसार विकास प्रक्रियाओं की निरंतरता का सिद्धांत केवल इस तथ्य पर बल देता है कि व्यक्ति में कोई आकस्मिक परिवर्तन नहीं होता | उदाहरणार्थ मनुष्य की शारीरिक अभिवृद्धि आयु बढ़ने के साथ-साथ धीरे-धीरे बढ़ती है | एकदम नहीं और परिपक्वता प्राप्त करने के बाद रुक जाती है, तथा जहां तक मनोशारीरिक क्रिया - अनुक्रियाओं की बात है उनमें निरंतर परिवर्तन होता रहता है | इन परिवर्तनों में प्रगतिशील ऊर्ध्वगामी परिवर्तनों को विकास कहा जाता है और यह भी एकदम नहीं होता | जैसे-जैसे नए अनुभव होते हैं वैसे-वैसे नई - प्रतिक्रियाएं होने लगती है_ उनमें विकास होता रहता है |

व्यक्तिगतता का सिद्धांत (principle of individuality ):- यद्यपि मानव विकास का एक समान प्रतिमान होता है किंतु वंशानुक्रम एवं वातावरण की भिन्नता के कारण प्रत्येक व्यक्ति के विकास में कुछ भिन्नता भी होती है | जिस प्रकार कोई भी दो व्यक्ति पूर्णरूपेण एक समान नहीं हो सकता है | उसी तरह दो अलग-अलग व्यक्तियों का विकास भी पूर्णरूपेण एक तरह नहीं होता है | इसके अतिरिक्त बालको और बालिकाओं के विकास में भिन्नता होती है उदाहरणार्थ बालिकाओं का शारीरिक विकास बालको के शारीरिक विकास से बहुत अधिक भिन्न होता है |

परिमार्जिता का सिद्धांत (principle of modifiable ):- परिमार्जिता के सिद्धांत के अनुसार बालक के विकास की दिशा और गति का परिमार्जन किया जा सकता है | इस सिद्धांत का शैक्षिक निहितार्थ अत्यधिक महत्वपूर्ण है | शिक्षा का उद्देश्य है बालक का संतुलित और सर्वांगीण विकास करना | शिक्षा और प्रशिक्षण के द्वारा बालक के व्यवहार को वांछित दिशा में अनुप्रेरित किया जा सकता है | बालक के विकास (development) की  गति और दिशा को परिमार्जित कर उसके व्यक्तित्व के व्यवस्थापन_को बिगड़ने से बचाया जा सकता है |

विकास क्रम का सिद्धांत (principle of development sequence ):- यद्यपि विकास की प्रक्रिया गर्भावस्था से मृत्यु प्रयत्न निरंतर चलती रहती है | परंतु इस विकास का एक निश्चित क्रम होता है | सबसे पहले बालक का गामक और भाषा संबंधी विकास होता है | बालक_पहले क्रंदन करता है, फिर निरर्थक-शब्दों का उच्चारण करता है, अंत में सार्थक-शब्दों और वाक्यों पर पहुंचता है | इसी प्रकार गामक विकास में बच्चा पहले पहले हाथ पैर पटकता है, फिर पटकता है, फिर बैठता है, उसके बाद खड़ा होता, वह चलता है |

सामान्य से विशिष्ट प्रतिक्रियाओं का सिद्धांत ( principle of general to specific responses):- मनोवैज्ञानिकों ने यह भी स्पष्ट किया है, कि मनुष्य का विकास सामान्य प्रतिक्रियाओं से विशिष्ट प्रतिक्रियाओं की ओर होता है | हरलॉक के अनुसार:- "विकास की सब अवस्थाओं में बालक की प्रतिक्रियाएं विशिष्ट बनने से पूर्व सामान्य प्रकार की होती है | उदाहरण- बालक पहले हर वस्तु मुंह में रखता है, उसके बाद अनुभव द्वारा केवल खाद्य पदार्थों को ही मुंह में रखता है | उसके बाद एक निश्चित समय में निश्चित ढंग से खाना सीख लेता है |

केंद्र से निकट दूर का सिद्धांत (proximo distal principle):- इस सिद्धांत के अनुसार विकास का केंद्र बिंदु स्नायुमंडल होता है | विकास की गति केंद्र से दूरवर्ती भागों की ओर चलती है | पहले स्नायुमंडल का विकास होता है फिर स्नायुमंडल के निकटवर्ती भाग ह्रदय छाती आदि का विकास होता है | अंत में दूरवर्ती भाग पर एवं उनकी उंगलियों पर नियंत्रण होता है |

सेफलोकॉडल का सिद्धांत (cephalocaudal principle):- सिर सिद्धांत के अनुसार विकास की क्रिया सिर से आरंभ होकर पैरों की और आती है | अर्थात विकास ऊपर से नीचे की ओर चलता है | गर्भ में पहले सिर विकसित होता है, गर्म के बाद बालक सर्वप्रथम सिर को उठाता है | सिर, धड़ और बाद में दूर अंगों जैसे पैरों का हिलना डुलना सीखता है | बैठनेके पश्चात चलना दौड़ना सीखता है |

एकीकरण का सिद्धांत (principle of integration):-  विकास की प्रक्रिया एकीकरण इंटीग्रेशन (integration) के सिद्धांत का पालन करती है | इसके अनुसार बालक अपने संपूर्ण अंग को और फिर अंग के भागों को चलाना सीखता है | इसके बाद वह उन भागों में एकीकरण करना सीखता है | सामान्य से विशेष की और बदलते हुए विशेष प्रतिक्रियाओं और चेस्टाओ को इकट्ठे रूप में प्रयोग में लाना सीखता है | उदाहरण - एक बालक सबसे पहले अपने पूरे हाथ को, फिर उंगलियों को, और फिर वह हाथ और उंगलियों को एक-साथ चलाना सीखता है |

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